Friday, December 6, 2013

शिक्षामित्रों ने मंत्रियों को दिलाई घोषणा पत्र की याद



लखनऊ(ब्यूरो) शिक्षामित्रों ने प्रशिक्षण के बाद शिक्षक पद पर समायोजित किए जाने की मांग को लेकर गुरुवार को शिक्षामंत्री राज्यमंत्रियों से मिलकर उन्हें विधानसभा चुनाव में किए गए वादे की याद दिलाई।

शिक्षा मित्रों ने बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी तथा तीनों राज्य मंत्रियों वसीम अहमद, योगेश प्रताप सिंह कैलाश चौरसिया से मिलकर उन्हें घोषणा पत्र का ज्ञापन दिया। शिक्षा मित्रों ने कहा कि सत्ता में आने से पहले सपा ने वादा किया था कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद उन्हें सहायक अध्यापक के पद पर तैनाती दे दी जाएगी, लेकिन अब टीईटी की अनिवार्यता की बात कही जा रही है। इस पर बेसिक शिक्षा मंत्री ने कहा कि शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षण के बाद समायोजन संबंधी आदेश जल्द जारी किया जाएगा।
 


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वैकल्पिक शिक्षा आचार्य व अनुदेशक होंगे समायोजित




अमर उजाला ब्यूरो
लखनऊ। जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) के तहत रखे गए वैकल्पिक शिक्षा आचार्य, अनुदेशक और मदरसा अनुदेशकों के दिन भी बहुरने वाले हैं। बेसिक शिक्षा विभाग इसके समायोजन पर विचार कर रहा है। सचिव बेसिक शिक्षा नीतीश्वर कुमार के अनुसार परिषद के प्रस्ताव का परीक्षण किया जा रहा है। इस पर शीघ्र ही निर्णय कर लिया जाएगा। वैकल्पिक शिक्षा आचार्य, अनुदेशक और मदरसा अनुदेशकों की संख्या 11,500 के आसपास बताई जाती है।
उत्तर प्रदेश वैकल्पिक शिक्षा आचार्य, अनुदेशक एसोसिएशन के प्रतिनिधि मंडल को सचिव बेसिक शिक्षा ने बृहस्पतिवार को वार्ता के लिए बुलाया था। प्रतिनिधि मंडल में अध्यक्ष जगदम्बा सिंह, संरक्षक जहीर खान, उप संरक्षक सुरेंद्र कुमार यादव और प्रदेश महासचिव शीत कुमार मिश्र ने बताया कि केंद्र सरकार ने वर्ष 1999 में डीपीईपी कार्यक्रम की शुरुआत की थी। इसका मुख्य मकसद सरकारी स्कूल होने वाले स्थानों पर केंद्र बनाकर बच्चों को शिक्षित करना था। इसके लिए हाईस्कूल पास युवक और युवतियों को ग्राम शिक्षा समिति के माध्यम से वैकल्पिक शिक्षा आचार्य अनुदेशकों बनाया गया था।
इसी तरह मदरसा में उर्दू, अरबी पढ़ाने वाले बच्चों को हिंदी की शिक्षा देने के लिए मदरसा अनुदेशकों का चयन किया गया। वर्ष 2005 में डीपीईपी योजना को सर्व शिक्षा अभियान योजना में विलय कर दिया गया। सबकुछ ठीकठाक चल रहा था पर केंद्र ने वर्ष 2009 में वैकल्पिक शिक्षा अनुदेशकों का मानदेय रोक दिया। इसके बाद 31 मार्च 2009 को केंद्र बंद कर दिए गए। इसके बाद वैकल्पिक शिक्षा अनुदेशक बेकार हो गए। पर मदरसों में बच्चों को हिंदी पढ़ाने का काम वर्ष 2012 में बंद किया गया। बेसिक शिक्षा परिषद ने उनके समायोजन संबंधी प्रस्ताव शासन को भेजा है। इस पर सचिव ने आश्वासन दिया कि उनकी मांगों पर शीघ्र विचार किया जाएगा।
शिक्षक संगठन शिक्षा की गुणवत्ता सुधारे

सचिव बेसिक शिक्षा नीतीश्वर कुमार ने शिक्षक संघ के पदाधिकारियों से कहा है कि वे शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दें। सरकार उनकी मांगों पर विचार कर रही है। उन्होंने यह बातें प्राथमिक शिक्षक संघ के पदाधिकारियों से मुलाकात के दौरान कही। शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने उन्हें आश्वासन दिया कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने का वे हर संभव प्रयास करेंगे।
 


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जूनियर हाईस्कूलों में चल रहा है शिक्षकों का टोटा



एक चौथाई शिक्षक और एक तिहाई प्रधानाध्यापकों के पद खाली
तीन वर्षो से भर्ती पर रोक लगी होने से पठन-पाठन हुआ प्रभावित
जागरण संवाददाता, लखनऊ : शिक्षकों के टोटे ने बच्चों की शिक्षा हाशिये पर आ गई है। राजधानी में ही सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूलों में प्रधानाध्यापकों के एक तिहाई जबकि शिक्षकों के एक चौथाई पद खाली हैं। प्रदेश में 3211 सहायता प्राप्त जूनियर हाईस्कूलों की भी यही स्थिति है। शिक्षकों की कमी के कारण सर्व शिक्षा अभियान भी बेअसर हो रहा है। बेसिक शिक्षा अधिकारी एसएन चौरसिया का कहना है कि अभी तक नियुक्ति के संबंध में राज्य सरकार का कोई आदेश नहीं आया है। यदि कोई आदेश आता है तो अग्रिम कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षकों की भर्ती पर बीते तीन वर्ष से रोक लगी है। राजधानी में 41 सहायता प्राप्त जूनियर विद्यालय हैं, इनमें 18 में प्रधानाध्यापक नहीं हैं। वहीं तकरीबन 40 शिक्षकों के पद खाली हो चुके हैं। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों के रवैए के कारण भर्ती से रोक नहीं हट नहीं पा रही है। एक ओर सरकार सर्व शिक्षा अभियान के तहत छात्र-शिक्षक अनुपात को दुरुस्त करने में लगी है वहीं दूसरी ओर भर्ती न होने से विद्यालयों में शिक्षकों की कमी से छात्रों का पढ़ाई प्रभावित हो रही है। सेवानिवृत्ति व अन्य कारणों से शिक्षकों की कमी ने हालत और खराब कर दिए हैं। शासन स्तर से प्रधानाध्यापक तथा सहायक अध्यापक के पदों पर नियुक्ति के लिए पांच दिसंबर 2012 को दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं। इसके लिए प्रस्ताव भी जमा किए गए। यह प्रक्रिया भी लापरवाही की भेंट चढ़ गई है। आपसी खींचतान में बच्चों का नुकसान हो रहा लेकिन इससे कोई सरोकार नहीं दिखा रहा।
 


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यूपी प्राथमिक शिक्षा में फिर निकला फिसड्डी



बृजेश सिंह
नई दिल्ली। देश में प्राथमिक शिक्षा के मामले में उत्तर प्रदेश एक बार फिर फिसड्डी साबित हुआ है। इस मामले में देश के कुल 35 राज्य केंद्र शासित प्रदेशों में उत्तर प्रदेश 34वें स्थान पर है। उससे नीचे सिर्फ झारखंड ही है। प्राइमरी अपर प्राइमरी स्तर पर वर्ष 2012-13 के लिए मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण से यह तथ्य सामने आया है। सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि उत्तर प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ रही है। जबकि सरकारी स्कूलों में पिछले कुछ सालों में भारी निवेश हुआ है।
नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग एंड एडमिनिस्ट्रेशन और डायस ने देश के सभी राज्यों के सरकारी निजी स्कूलों के आधार पर प्राथमिक शिक्षा के विकास एवं स्थिति पर सर्वेक्षण का जो शुरुआती आंकड़ा जारी किया है वह यूपी के लिए काफी चेतावनी भरा है। आरटीई लागू होने के बाद राज्य में स्कूलों के भवन निर्माण से लेकर टीचर ट्रेनिंग तक बहुत सारे कार्यक्रम चले हैं लेकिन वे दूसरे राज्यों की तुलना में काफी पीछे रहे। यही कारण है कि आज देश में सर्वाधिक उम्र दराज शिक्षकों का औसत भी उत्तर प्रदेश में है क्योंकि यहां तमाम कोशिशों के बावजूद नए शिक्षकों की भर्ती का मामला लटका हुआ है। सरकारी स्कूलों में हर छठा शिक्षक और सहायता प्राप्त स्कूलों में हर चौथा शिक्षक 55 साल से ज्यादा की उम्र का है। जबकि निजी स्कूलों में मात्र छह फीसदी इस उम्र के हैं।
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश में हालांकि अभी भी पचास फीसदी से अधिक छात्र सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं लेकिन हर साल तेजी से इनकी संख्या में गिरावट दर्ज हो रही है। जबकि निजी स्कूलों में छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वर्ष 2011-12 की तुलना में इस साल सरकारी स्कूलों में प्राइमरी स्तर पर 8.90 लाख अपर प्राइमरी में 33 हजार कम छात्रों का दाखिला हुआ है।
दूसरी ओर निजी स्कूलों में प्राइमरी स्तर पर 10.55 लाख तथा अपर प्राइमरी स्कूलों में 12 लाख से भी ज्यादा छात्रों की संख्या में इजाफा हुआ है। यह अंतर तब है जबकि पिछले कुछ सालों में सरकार ने हजारों की संख्या में प्राइमरी एवं अपर प्राइमरी स्कूलों का निर्माण कराया है। स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता की गिरावट को इसका मुख्य कारण माना जा रहा है।
आल इंडिया रैंकिंग में 34वां स्थान सिर्फ झारखंड है इससे नीचे
-बड़ी संख्या में बच्चे निजी स्कूूलों में हो रहे हैं शिफ्ट


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