• अमर
उजाला ब्यूरो
लखनऊ।
जिला प्राथमिक शिक्षा
कार्यक्रम (डीपीईपी) के तहत
रखे गए वैकल्पिक
शिक्षा आचार्य, अनुदेशक और
मदरसा अनुदेशकों के
दिन भी बहुरने
वाले हैं। बेसिक
शिक्षा विभाग इसके समायोजन
पर विचार कर
रहा है। सचिव
बेसिक शिक्षा नीतीश्वर
कुमार के अनुसार
परिषद के प्रस्ताव
का परीक्षण किया
जा रहा है।
इस पर शीघ्र
ही निर्णय कर
लिया जाएगा। वैकल्पिक
शिक्षा आचार्य, अनुदेशक और
मदरसा अनुदेशकों की
संख्या 11,500 के आसपास
बताई जाती है।
उत्तर
प्रदेश वैकल्पिक शिक्षा आचार्य,
अनुदेशक एसोसिएशन के प्रतिनिधि
मंडल को सचिव
बेसिक शिक्षा ने
बृहस्पतिवार को वार्ता
के लिए बुलाया
था। प्रतिनिधि मंडल
में अध्यक्ष जगदम्बा
सिंह, संरक्षक जहीर
खान, उप संरक्षक
सुरेंद्र कुमार यादव और
प्रदेश महासचिव शीत कुमार
मिश्र ने बताया
कि केंद्र सरकार
ने वर्ष 1999 में
डीपीईपी कार्यक्रम की शुरुआत
की थी। इसका
मुख्य मकसद सरकारी
स्कूल न होने
वाले स्थानों पर
केंद्र बनाकर बच्चों को
शिक्षित करना था।
इसके लिए हाईस्कूल
पास युवक और
युवतियों को ग्राम
शिक्षा समिति के माध्यम
से वैकल्पिक शिक्षा
आचार्य व अनुदेशकों
बनाया गया था।
इसी
तरह मदरसा में
उर्दू, अरबी पढ़ाने
वाले बच्चों को
हिंदी की शिक्षा
देने के लिए
मदरसा अनुदेशकों का
चयन किया गया।
वर्ष 2005 में डीपीईपी
योजना को सर्व
शिक्षा अभियान योजना में
विलय कर दिया
गया। सबकुछ ठीकठाक
चल रहा था
पर केंद्र ने
वर्ष 2009 में वैकल्पिक
शिक्षा अनुदेशकों का मानदेय
रोक दिया। इसके
बाद 31 मार्च 2009 को केंद्र
बंद कर दिए
गए। इसके बाद
वैकल्पिक शिक्षा अनुदेशक बेकार
हो गए। पर
मदरसों में बच्चों
को हिंदी पढ़ाने
का काम वर्ष
2012 में बंद किया
गया। बेसिक शिक्षा
परिषद ने उनके
समायोजन संबंधी प्रस्ताव शासन
को भेजा है।
इस पर सचिव
ने आश्वासन दिया
कि उनकी मांगों
पर शीघ्र विचार
किया जाएगा।
शिक्षक
संगठन शिक्षा की
गुणवत्ता सुधारे
सचिव
बेसिक शिक्षा नीतीश्वर
कुमार ने शिक्षक
संघ के पदाधिकारियों
से कहा है
कि वे शिक्षा
की गुणवत्ता पर
ध्यान दें। सरकार
उनकी मांगों पर
विचार कर रही
है। उन्होंने यह
बातें प्राथमिक शिक्षक
संघ के पदाधिकारियों
से मुलाकात के
दौरान कही। शिक्षक
संघ के पदाधिकारियों
ने उन्हें आश्वासन
दिया कि शिक्षा
की गुणवत्ता सुधारने
का वे हर
संभव प्रयास करेंगे।
See also: http://uptetpoint.wapka.me/index.xhtml
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