Thursday, September 12, 2013

शिक्षक भर्ती घोटाला: चौटाला की याचिका उच्चतम न्यायालय में खारिज


क्या बीमारी के कारण कुर्सी छोड़ देंगे चौटाला

नयी दिल्ली:  कोर्ट ने बीमारी के आधार पर उनकी अंतरिम जमानत बढ़ाने से साफ इन्कार करते हुए कहा कि क्या सत्ता में आने पर वह बीमारी के कारण कुर्सी छोड़ देंगे? पीठ ने कहा कि वह अस्पताल में नहीं रह सकते। वह बिल्कुल ठीक हैं और उन्हें जेल जाना होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने प्रभावी और अमीर लोगों के विशेष सुविधाएं लेने पर कड़ी टिप्पणियां भी कीं। हालांकि कोर्ट ने चौटाला को समर्पण करने के लिए छह दिन का और समय दे दिया

उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के शिक्षक भर्ती घोटाले में दोषी पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला की स्वास्थ्य के आधार पर जमानत की अवधि बढ़ाने के लिये दायर याचिका आज खारिज कर दी. न्यायालय ने कहा कि उच्च स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय में स्पष्ट है कि अब उनके अस्पताल में रहने की आवश्यकता नहीं है.न्यायमूर्ति एच एल दत्तू और न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय की खंडपीठ ने चौटाला की याचिका खारिज करने के साथ ही उन्हें जेल प्रशासन के समक्ष समर्पण के लिये 23 सितंबर तक का वक्त दिया है. पहले उन्हें 17 सितंबर तक समर्पण करना था. न्यायालय ने कहा कि चौटाला को हर कीमत पर 23 सितंबर तक समर्पण कर देना चाहिए.

न्यायालय ने जेल प्रशासन को निर्देश दिया कि आवश्यकता पड़ने पर चौटाला को उचित, प्रभावी और दक्षता प्राप्त चिकित्सा सहायता उपलब्ध करायी जाये.इंडियन नेशनल लोकदल के 78 वर्षीय नेता ने स्वास्थ्य के आधार पर जमानत की अवधि बढाने से उच्च न्यायालय के इंकार के बाद शीर्ष अदालत में याचिका दायर की थी. उच्च न्यायालय ने 6 सितंबर को उनकी याचिका खारिज करते हुये उन्हें 17 सितंबर तक जेल प्रशासन के समक्ष समर्पण का निर्देश दिया था.  उच्च न्यायालय ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर चौटाला की जमानत की अवधि बढ़ाने से इंकार कर दिया था. बोर्ड ने कहा था कि अब चौटाला के अस्पताल में रहने की आवश्यकता नहीं है.

 पीठ ने सजा के खिलाफ दाखिल चौटाला की अपील पर हाई कोर्ट के शीघ्र सुनवाई करने पर टिप्पणियां भी कीं। कहा कि उनकी अपील तो जनवरी में दाखिल हुई और उस पर सुनवाई भी होने लगी जबकि यहां (सुप्रीम कोर्ट) में वर्ष 2005 में मौत की सजा के केस अभी लंबित हैं।   

दिल्ली की विशेष अदालत ने 22 जनवरी को शिक्षक भर्ती घोटाले में चौटाला, उनके पुत्र अजय चौटाला को दस दस साल की तथा 53 अन्य दोषियों को अलग अलग अवधि की सजा सुनायी थी. इनमें से 44 दोषियों का चार चार साल की और एक दोषी को पांच साल की कैद की सजा सुनायी गयी है.  चौटाला ने दस साल की सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर रखी है

गौरतलब है कि चौटाला और उनके पुत्र अजय चौटाला और 53 अन्य जूनियर बेसिक प्रशिक्षित शिक्षक भर्ती घोटाले में अलग अलग समय के लिए जेल में सजा काट रहे हैं


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अब अक्टूबर में होगी शिक्षामित्रों की परीक्षा

परीक्षा नियामक का निर्देश, 30 सितंबर तक जमा होंगे आवेदन पत्र

इलाहाबाद : दूरस्थ शिक्षा पद्धति से प्रशिक्षण हासिल कर रहे शिक्षामित्रों की सेमेस्टर परीक्षा अक्टूबर में होने जा रही है। इसके साथ ही शिक्षक बनने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण ले रहे अन्य प्रशिक्षण सत्रों की भी परीक्षा अक्टूबर के पहले सप्ताह में होगी। इसके लिए परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय सचिव ने सभी डायट प्राचार्यो को निर्देश जारी किया है। परीक्षा के लिए 30 सितंबर तक आवेदन पत्र जमा होंगे।1सचिव परीक्षा नियामक प्राधिकारी ने कहा है कि बीटीसी बैच 2010 के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ सेमेस्टर और बैच 2011 के प्रथम, द्वितीय और तृतीय सेमेस्टर और मृतक आश्रित कोटे के सेवारत बीटीसी द्वितीय और चतुर्थ सेमेस्टर, उर्दू बीटीसी विशेष प्रशिक्षण, विशिष्ट बीटीसी प्रशिक्षण 2004, 2007 और 2008 सामान्य व विशेष चयन और प्रथम चरण में प्रशिक्षण के लिए चयनित स्नातक शिक्षामित्रों के चारों सेमेस्टर और दूसरे प्रशिक्षण चरण में चयनित प्रथम और द्वितीय सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित की जा रही है। शिक्षामित्रों के लिए तीन सौ रुपये परीक्षा शुक्ल निर्धारित किया गया है। उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र संघ के पदाधिकारियों अनिल कुमार यादव, कौशल, वसीम अहमद आदि ने परीक्षा कराए जाने की घोषणा का स्वागत किया है।



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सूबे की नौकरियों में किस वर्ग को कितना आरक्षण

 

इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि प्रदेश की सरकारी नौकरियों में किस वर्ग को कितना आरक्षण मिल रहा है। अदालत ने यह भी पूछा है कि सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ लगाती है और क्या आरक्षित वर्ग की कुछ जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल चुका है। अदालत ने सरकार से आरक्षण देने का क्राइटेरिया स्पष्ट करने तथा सेवाओं में विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा पेश करने का भी निर्देश दिया है। 1यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने सुमित कुमार शुक्ल व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि आरक्षण व्यवस्था विभिन्न वर्गो के पर्याप्त प्रतिनिधित्व होने तक ही जारी रखने की व्यवस्था है। सरकार इसका पता लगाये बिना आरक्षण जारी रखे हैं। इससे आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व कोटे से अधिक हो गया है जो कानून की मंशा के विपरीत है। 1आरक्षण पर रोक लगनी चाहिए। याची की ओर से अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन व अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी ने पक्ष रखा। सरकार ने अपनी ही एक रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि कुछ आरक्षित जातियों का प्रतिनिधित्व ए सर्विस में 60 प्रतिशत पहुंच गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या विगत 10 वर्षो में कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए कोई कमेटी गठित हुई है जिसने यह पता लगाया कि आरक्षण की वास्तविक स्थिति क्या है। क्या किसी आयोग ने इस पर रिपोर्ट दी है। यदि प्रतिनिधित्व पर आयोग की रिपोर्ट उपलब्ध है तो सरकार ने इस पर क्या कार्यवाही की। 1इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि प्रदेश की सरकारी नौकरियों में किस वर्ग को कितना आरक्षण मिल रहा है। अदालत ने यह भी पूछा है कि सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ लगाती है और क्या आरक्षित वर्ग की कुछ जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल चुका है। अदालत ने सरकार से आरक्षण देने का क्राइटेरिया स्पष्ट करने तथा सेवाओं में विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा पेश करने का भी निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने सुमित कुमार शुक्ल व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि आरक्षण व्यवस्था विभिन्न वर्गो के पर्याप्त प्रतिनिधित्व होने तक ही जारी रखने की व्यवस्था है। सरकार इसका पता लगाये बिना आरक्षण जारी रखे हैं। इससे आरक्षित वर्ग का प्रतिनिधित्व कोटे से अधिक हो गया है जो कानून की मंशा के विपरीत है। 1आरक्षण पर रोक लगनी चाहिए। याची की ओर से अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन व अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी ने पक्ष रखा। सरकार ने अपनी ही एक रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि कुछ आरक्षित जातियों का प्रतिनिधित्व ए सर्विस में 60 प्रतिशत पहुंच गया है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या विगत 10 वर्षो में कर्मचारियों के प्रतिनिधित्व का पता लगाने के लिए कोई कमेटी गठित हुई है जिसने यह पता लगाया कि आरक्षण की वास्तविक स्थिति क्या है। क्या किसी आयोग ने इस पर रिपोर्ट दी है। यदि प्रतिनिधित्व पर आयोग की रिपोर्ट उपलब्ध है तो सरकार ने इस पर क्या कार्यवाही की। 

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शिक्षक भर्ती में नहीं मिलेगा पीजी के अंकों का लाभ

लखनऊ (ब्यूरो)। राजकीय इंटर कॉलेजों में होने वाली एलटी ग्रेड भर्तियों में अब परास्नातक अभ्यर्थियों को अतिरिक्त लाभ नहीं मिलेगा। सरकार ने इन भर्तियों में पीजी के अंकों का वेटेज खत्म करने की तैयारी कर ली है। नियमावली में इस नए संशोधन को शिक्षा विभाग ने सहमति दे दी है। जल्द ही कैबिनेट बैठक में इस संशोधन प्रस्ताव को रखा जाएगा। हाईस्कूल तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रदेश में लगभग 6000 भर्तियां होनी हैं। इनमें पुरुष और महिलाओं के लिए आधे-आधे पद हैं।

राजकीय इंटर कॉलेजों में पहले 3000 भर्तियों का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। इनमें 1500 पुरुष और 1500 महिला शिक्षकों की भर्ती होनी थी। शिक्षकों के करीब 7000 पद खाली हैं। राजकीय शिक्षक संघ की एकमुश्त सभी भर्तियां कराने की मांग पर भर्तियों की संख्या 3000 से बढ़ाकर 6000 कर दी गई। इन पदों के लिए शैक्षिक अर्हता स्नातक थी। जो परास्नातक होते थे उन्हें 15 अंकों का अतिरिक्त वेटेज दिया जाता था।

इस पर भी आपत्ति यह उठती रही है कि कई अभ्यर्थी जिस विषय के अध्यापक के लिए आवेदन करते थे, उसमें पीजी नहीं होते। दूसरे विषय में पीजी होने पर भी उन्हें अतिरिक्त अंकों का लाभ मिल जाता था। लेकिन इसका कोई लाभ स्टूडेंट्स को नहीं मिलता था। इस पर कई मामले कोर्ट में भी लम्बित हैं। इसी को देखते हुए नियमावली में संशोधन की बात शासन ने कही थी। माध्यमिक शिक्षा निदेशालय ने यह संशोधन प्रस्ताव शासन को भेज दिया। शासन स्तर पर भी इस पर सहमति बन गई है। अब कार्मिक विभाग की सहमति के बाद इसे कैबिनेट बैठक में रखा जाएगा।
नए संशोधन के मुताबिक अब केवल हाईस्कूल, इंटर और स्नातक के अंकों के आधार पर ही मेरिट तैयार की जाएगी। परास्नातक के अंकों का वेटेज नहीं दिया जाएगा। ऐसे में अभी कैबिनेट की मंजूरी तक शिक्षकों को और इंतजार करना होगा।

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टीईटी की अनिवार्यता पर यूपी व केंद्र से जवाब तलब


नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लागू किए गए टीचर एलिजेबिलटी टेस्ट (टीईटी) के खिलाफ दायर याचिका पर केंद्र व राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। इस मुद्दे पर विशिष्ट बीटीसी में 2007-08 में उत्तीर्ण हुए अभ्यर्थियों ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
सर्वोच्च अदालत से इन अभ्यर्थियों ने कहा है कि टीईटी को लागू किए जाने से पहले उनका कोर्स पूरा हो चुका था। लेकिन तब गैर-एनसीटीई संस्थानों से मान्यता प्राप्त डिग्रियां होने के आधार पर राज्य सरकार ने प्रशिक्षण से रोक दिया था। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने अक्तूबर, 2010 में दिए फैसले में अभ्यर्थियों की बीएड डिग्रियों को सही करार दिया। हालांकि इससे पहले राज्य सरकार ने अगस्त, 2010 में टीईटी लागू कर दिया। अब प्रशिक्षण पूरा करने के बावजूद राज्य सरकार कह रही है कि टीईटी परीक्षा पास किए बगैर कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष राम प्रकाश शर्मा समेत आठ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता आरके सिंह ने तर्क दिया कि मेरे मुवक्किलों ने टीईटी लागू किए जाने से पहले विशिष्ट बीटीसी में सफलता हासिल की थी। लेकिन राज्य सरकार की ओर से डिग्रियों पर सवाल उठाए जाने के बाद प्रशिक्षण नहीं हो पाया। अब मेरे सभी मुवक्किलों समेत कई हजार लोगों का प्रशिक्षण पूरा हो चुका है। लेकिन राज्य सरकार अब इस पर आमादा है कि अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए इन सबके लिए भी टीईटी पास करना जरूरी है। अधिवक्ता ने कहा कि कोई भी नया टेस्ट मेरे मुवक्किलों समेत उन अभ्यर्थियों पर लागू नहीं होता जो टीईटी लागू किए जाने से पहले विशिष्ट बीटीसी की परीक्षा पास कर चुके थे।
पीठ ने अधिवक्ता के तर्क से सहमति जताते हुए केंद्र, एनसीटीई, राज्य सरकार और राज्य के शिक्षा विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है। गौरतलब है कि अभ्यर्थियों की ओर से हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ के फैसले को चुनौती दी गई है जिसने सभी के लिए टीईटी को अनिवार्य करार दिया था।
इससे पहले हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भी अभ्यर्थियों की याचिका खारिज कर दी थी। अभ्यर्थियों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से 2010 में फैसला दिए जाने के बाद 2012 में उन्हें प्रशिक्षण मिला। जबकि वह 2007-08 में विशिष्ट बीटीसी में सफल हुए थे। ऐसे में उन पर टीईटी लागू नहीं होता।

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जितना चाहिए, उससे अधिक मिल चुका आरक्षण


सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व मामले पर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में दिया हलफनामा

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्ग को जितना प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए उससे ज्यादा अब से दस वर्ष पूर्व ही मिल चुका है। यह किसी रिसर्च या आंकलन का नतीजा नहीं है बल्कि प्रदेश सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट के आंकड़े कह रहे हैं। सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व के मसले पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से विस्तृत आंकड़ा प्रस्तुत करने को कहा था। सरकार ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए, उसके मुताबिक दस वर्ष पहले ही नौकरियों में कुछ वर्गों का प्रतिनिधित्व मानक से अधिक हो चुका है।
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल वर्ष 2001 की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए पूछा है कि यदि उसके आंकड़े सही हैं तो मौजूदा समय में सरकारी नौकरियों में जातियों का प्रतिनिधित्व क्या है। प्रतिनिधित्व तय करने के मानक क्या हैं। यह भी कि 2001 में ही प्रतिनिधित्व मानक से अधिक था तो किस आधार पर जारी रखा गया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह की मोहलत दी है।
सुमित कुमार शुक्ला द्वारा 42 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती से संबंधित 20 जून 2013 की अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल गई है। इस पर बहस करते हुए याची के अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन और अग्निहोत्री त्रिपाठी ने वर्ष 2001 की रिपोर्ट की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाया। रिपोर्ट सरकार द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति द्वारा 31 अगस्त 2001 को प्रस्तुत की गई थी। इसके मुताबिक उस वक्त सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति के कुछ वर्गो का प्रतिनिधित्व 59.67 प्रतिशत था। इसी प्रकार से अन्य पिछड़ा वर्ग में कुछ जातियों को 34.49 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। (जबकि प्रदेश में ओबीसी को 27 फीसदी और एससी, एसटी को 23 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है) सरकार ने इसी रिपोर्ट को हलफनामे के साथ दाखिल किया है। याची के वकीलों ने इसी रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार को अदालत में घेरा। याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि यदि ये आंकड़े सही हैं तो राज्य सरकार को इन जातियों केे लिए आरक्षण जारी रखने पर स्पष्टीकरण देना होगा।
अधिवक्ताओं का कहना था कि वर्ष 2001 से अब तक एक दशक से अधिक समय बीत चुका है। आरक्षित वर्ग में कुछ वर्गों का प्रतिनिधित्व काफी अधिक हो चुका है। इसके बाद भी सरकार आरक्षण पूर्ववत जारी रखे है जबकि संविधान इस स्थिति में आरक्षण जारी रखने की इजाजत नहीं देता है।
Source : अमर उजाला ब्यूरो


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Wednesday, September 11, 2013

उर्दू शिक्षक के लिए आज से भर सकेंगे संशोधित फार्म

लखनऊ(ब्यूरो)। उर्दू शिक्षकों की भर्ती के लिए चल रहे ऑनलाइन आवेदन में संशोधन फार्म बुधवार से 16 सितंबर तक भरे जा सकेंगे। यह जानकारी सचिव बेसिक शिक्षा नितिश्वर कुमार ने दी है। उन्होंने बताया कि ऑनलाइन आवेदन में जिन आवेदकों ने प्रयोगात्मक और सैद्धांतिक अंकों को अलग-अलग नहीं भरा है वे इस अवधि में संशोधित कर सकते हैं। विभाग को जानकारी मिली है कि काफी संख्यामें आवेदक केवल एक ही नंबर फार्म में भरे हैं। मेरिट में इन नंबरों को जोड़ा जाएगा। इसलिए आवेदक इस अवधि में संशोधित फार्म भर दें। फार्म ऑनलाइन ही संशोधित किए जा सकेंगे।

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शिक्षामित्रों को शिक्षक बनाने का प्रस्ताव निदेशालय ने भेजा

•उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा नियमावली में संशोधन का भ्‍ाी दिया है सुझाव
लखनऊ । बेसिक शिक्षा निदेशालय ने प्रदेश के 1.76 लाख शिक्षामित्रों को दो वर्षीय प्रशिक्षण के बाद परिषदीय स्कूलों में सहायक अध्यापक बनाने संबंधी प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। इसमें उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा अध्यापक सेवा नियमावली में संशोधन का सुझाव भी दिया गया है। शिक्षामित्रों को टीईटी के दायरे में रखने या बाहर किए जाने पर विचार के लिए शासन स्तर पर जल्द ही अफसरों की एक बैठक बुलाई जाएगी। वहीं टीईटी की अनिवार्यता संबंधी हाईकोर्ट के 30 मई के आदेश पर न्याय विभाग से भी राय ली जाएगी।

राज्य सरकार शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षण के बाद प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापक बनाना चाहती है, लेकिन हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) की अधिसूचना के आधार पर कक्षा 8 तक स्कूलों में शिक्षक बनने के लिए टीईटी को अनिवार्य कर दिया है। बेसिक शिक्षा निदेशालय के नियमावली में संशोधन के सुझाव में टीईटी आड़े आ रही है। शिक्षामित्र टीईटी देने के लिए तैयार नहीं है।
वे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर बेसिक शिक्षा मंत्री रामगोविंद चौधरी तक से विरोध दर्ज करा चुके हैं। इसलिए शासन स्तर पर यह तय किया गया है कि नियमावली को संशोधित करने से पहले अधिकारियों से राय ले ली जाए। इसके आधार पर अंतिम निर्णय किया जाएगा।


Source: • अमर उजाला ब्यूरो

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