सरकारी नौकरियों में समुचित
प्रतिनिधित्व मामले पर प्रदेश
सरकार ने हाईकोर्ट
में दिया हलफनामा
हाईकोर्ट ने प्रदेश
सरकार द्वारा दाखिल
वर्ष 2001 की रिपोर्ट
पर संज्ञान लेते
हुए पूछा है
कि यदि उसके
आंकड़े सही हैं
तो मौजूदा समय
में सरकारी नौकरियों
में जातियों का
प्रतिनिधित्व क्या है।
प्रतिनिधित्व तय करने
के मानक क्या
हैं। यह भी
कि 2001 में ही
प्रतिनिधित्व मानक से
अधिक था तो
किस आधार पर
जारी रखा गया।
कोर्ट ने प्रदेश
सरकार को जवाब
दाखिल करने के
लिए दो सप्ताह
की मोहलत दी
है।
सुमित कुमार शुक्ला द्वारा
42 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती
से संबंधित 20 जून
2013 की अधिसूचना को चुनौती
देते हुए याचिका
दाखिल गई है।
इस पर बहस
करते हुए याची
के अधिवक्ता अनिल
सिंह बिसेन और
अग्निहोत्री त्रिपाठी ने वर्ष
2001 की रिपोर्ट की ओर
कोर्ट का ध्यान
दिलाया। रिपोर्ट सरकार द्वारा
गठित सामाजिक न्याय
समिति द्वारा 31 अगस्त
2001 को प्रस्तुत की गई
थी। इसके मुताबिक
उस वक्त सरकारी
नौकरियों में अनुसूचित
जाति के कुछ
वर्गो का प्रतिनिधित्व
59.67 प्रतिशत था। इसी
प्रकार से अन्य
पिछड़ा वर्ग में
कुछ जातियों को
34.49 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है।
(जबकि प्रदेश में
ओबीसी को 27 फीसदी
और एससी, एसटी
को 23 फीसदी आरक्षण
का प्रावधान है)। सरकार
ने इसी रिपोर्ट
को हलफनामे के
साथ दाखिल किया
है। याची के
वकीलों ने इसी
रिपोर्ट पर प्रदेश
सरकार को अदालत
में घेरा। याचिका
पर सुनवाई कर
रहे न्यायमूर्ति सुधीर
अग्रवाल ने कहा
कि यदि ये
आंकड़े सही हैं
तो राज्य सरकार
को इन जातियों
केे लिए आरक्षण
जारी रखने पर
स्पष्टीकरण देना होगा।
अधिवक्ताओं
का कहना था
कि वर्ष 2001 से
अब तक एक
दशक से अधिक
समय बीत चुका
है। आरक्षित वर्ग
में कुछ वर्गों
का प्रतिनिधित्व काफी
अधिक हो चुका
है। इसके बाद
भी सरकार आरक्षण
पूर्ववत जारी रखे
है जबकि संविधान
इस स्थिति में
आरक्षण जारी रखने
की इजाजत नहीं
देता है।
Source : • अमर उजाला ब्यूरो
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