Thursday, September 12, 2013

जितना चाहिए, उससे अधिक मिल चुका आरक्षण


सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व मामले पर प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट में दिया हलफनामा

इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश की सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और पिछड़े वर्ग को जितना प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए उससे ज्यादा अब से दस वर्ष पूर्व ही मिल चुका है। यह किसी रिसर्च या आंकलन का नतीजा नहीं है बल्कि प्रदेश सरकार की तरफ से हाईकोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट के आंकड़े कह रहे हैं। सरकारी नौकरियों में समुचित प्रतिनिधित्व के मसले पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार से विस्तृत आंकड़ा प्रस्तुत करने को कहा था। सरकार ने जो आंकड़े प्रस्तुत किए, उसके मुताबिक दस वर्ष पहले ही नौकरियों में कुछ वर्गों का प्रतिनिधित्व मानक से अधिक हो चुका है।
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल वर्ष 2001 की रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए पूछा है कि यदि उसके आंकड़े सही हैं तो मौजूदा समय में सरकारी नौकरियों में जातियों का प्रतिनिधित्व क्या है। प्रतिनिधित्व तय करने के मानक क्या हैं। यह भी कि 2001 में ही प्रतिनिधित्व मानक से अधिक था तो किस आधार पर जारी रखा गया। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह की मोहलत दी है।
सुमित कुमार शुक्ला द्वारा 42 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती से संबंधित 20 जून 2013 की अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल गई है। इस पर बहस करते हुए याची के अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन और अग्निहोत्री त्रिपाठी ने वर्ष 2001 की रिपोर्ट की ओर कोर्ट का ध्यान दिलाया। रिपोर्ट सरकार द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति द्वारा 31 अगस्त 2001 को प्रस्तुत की गई थी। इसके मुताबिक उस वक्त सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति के कुछ वर्गो का प्रतिनिधित्व 59.67 प्रतिशत था। इसी प्रकार से अन्य पिछड़ा वर्ग में कुछ जातियों को 34.49 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त है। (जबकि प्रदेश में ओबीसी को 27 फीसदी और एससी, एसटी को 23 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है) सरकार ने इसी रिपोर्ट को हलफनामे के साथ दाखिल किया है। याची के वकीलों ने इसी रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार को अदालत में घेरा। याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि यदि ये आंकड़े सही हैं तो राज्य सरकार को इन जातियों केे लिए आरक्षण जारी रखने पर स्पष्टीकरण देना होगा।
अधिवक्ताओं का कहना था कि वर्ष 2001 से अब तक एक दशक से अधिक समय बीत चुका है। आरक्षित वर्ग में कुछ वर्गों का प्रतिनिधित्व काफी अधिक हो चुका है। इसके बाद भी सरकार आरक्षण पूर्ववत जारी रखे है जबकि संविधान इस स्थिति में आरक्षण जारी रखने की इजाजत नहीं देता है।
Source : अमर उजाला ब्यूरो


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