-आरटीई
पर जारी ताजा
आंकड़े में हुआ
खुलासा
नई
दिल्ली। प्राइमरी स्कूलों में
शिक्षकों की भर्ती
के मामले में
उत्तर प्रदेश पूरे
देश में फिसड्डी
साबित हुआ है।
आरटीई कानून 2009 में
बनने के बाद
तीन साल तक
जरूरी व्यवस्था की
लिए मिली मोहलत
के बावजूद यूपी
में शिक्षकों की
भर्ती के मामले
में कुछ खास
नहीं किया गया।
अप्रैल, 2013 में इस
एक्ट के प्रभावी
हो जाने के
बाद पहली बार
जारी हुए आंकड़ों
के अनुसार उत्तर
प्रदेश में प्राथमिक
शिक्षकों के 306680 पद रिक्त
हैं। इस मामले
में बिहार दूसरे
स्थान पर है।
केंद्रीय
शिक्षा सलाहकार समिति (केब)
की 10 अक्तूबर को
होने वाली बैठक
में देश में
आरटीई कानून में
अब तक हुई
प्रगति की समीक्षा
होगी। बैठक से
पहले आरटीई में
देश के विभिन्न
राज्यों की प्रगति
संबंधी रिपोर्ट के अनुसार
स्कूलों में ढांचा
के निर्माण का
काम तो अधिकांश
राज्यों ने पूरा
कर लिया है
किंतु शिक्षकों की
भर्ती, उनके प्रशिक्षण
और पाठ्यक्रम में
बदलाव जैसे अहम
कदम उठाने में
कई राज्य बहुत
पीछे हैं। देश
में इस समय
कुल 1187761 शिक्षकों के पद
रिक्त हैं इनमें
से चालीस फीसदी
रिक्तियां अकेले यूपी और
बिहार में हैं।
उपलब्ध
आंकड़ों के अनुसार
देश में इस
समय कार्यरत शिक्षकों
में से 20 फीसदी
शिक्षक (8.6 लाख) अप्रशिक्षित
हैं। इनमें 1.43 लाख
शिक्षक यूपी से
से हैं। प्रदेश
अप्रशिक्षित शिक्षकों के मामले
में पश्चिम बंगाल
और बिहार के
बाद तीसरे स्थान
पर है। आरटीई
कानून के तहत
राज्यों को बच्चों
की उम्र के
अनुसार पाठ्यक्रमों में बदलाव
के लिए मानक
तय किए गए
थे। हिमाचल प्रदेश
और पंजाब समेत
चार राज्यों में
अभी तक पाठ्यक्रम
के बदलाव का
काम अधर में
है। नये कानून
के तहत प्राइमरी
स्कूलों में साल
भर में कम
से कम 200 दिन
और माध्यमिक स्कूलों
में 220 दिन की
पढ़ाई होना जरूरी
है। इन मानकों
को पूरा करने
वाला गोवा देश
का एकमात्र राज्य
है।
आठवीं
कक्षा तक लागू
नो डिटेंशन पॉलिसी
(फेल नहीं करने
का नियम) की
समीक्षा के लिए
जून, 2012 में गठित
केब की उप
समिति अभी तक
इस मामले में
कोई फैसला नहीं
ले सकी। उप
समिति की अध्यक्ष
हरियाणा की शिक्षा
मंत्री गीता भुक्खल
के बार-बार
दावों के बावजूद
रिपोर्ट नहीं जमा
करने के कारण
इस मामले में
आगे भी असमंजस
बरकरार रहेगा। केब की
बैठक में इस
मुद्दे पर भी
चर्चा होगी।
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