Wednesday, November 26, 2014

लिंग के आधार पर छात्राओं को रोकना गलत

इलाहाबाद (एसएनबी)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज पारित एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि लिंग के आधार पर भेदभाव पूर्णतया असंवैधानिक है। न्यायालय ने खतरा को आधार बनाकर अलीगढ़ मुस्लिम विवविद्यालय के कुलपति द्वारा वहां की छात्राओं को कैम्पस स्थित मौलाना आजाद लाइब्रेरी में जाने से एक निर्धारित अवधि के लिए रोकने को गलत बताया है।
कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत शैक्षिक मामलों में कोर्ट को हस्तक्षेप का बहुत ही सीमित अधिकार है, परन्तु जहां लिंग के आधार पर लड़कों व लड़कियों में भेदभाव हो रहा हो वहां पर कोर्ट को अवश्य हस्तक्षेप करना होगा। यह फैसला मुख्य न्यायमूर्ति डीवाईचन्द्रचुड़ व न्यायमूर्ति पीकेएस बघेल की खंडपीठ ने चार विधि छात्रों दीक्षा द्विवेदी व अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका पर दिया है। चूंकि कुलपति व रजिस्ट्रार अलीगढ़ मुस्लिम विवविद्यालय ने हलफनामा देकर कोर्ट को आज उन कारणों का उल्लेख किया था, जिस कारण एएमयू स्थित मौलाना आजाद लाइब्रेरी में लड़कियों के प्रवेश पर रोक लगायी गयी थी। कहा गया था कि वहां पर लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं है। न्यायालय ने एएमयू के आश्वासन के बाद छात्रों की इस याचिका को निस्तारित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विविद्यालय प्रशासन यदि छात्राओं की सुरक्षा को लेकर जिला प्रशासन को अर्जी देता है तो प्रशासन उन्हें सहयोग करे। अदालत ने कहा कि कुलपति द्वारा लिंग को आधार बनाकर विवि परिसर स्थित लाइब्रेरी में जाने से छात्राओं को रोकना गलत व गैरकानूनी था। यही नहीं कोर्ट ने कहा कि लाइब्रेरी में जाने से लड़कों द्वारा लड़कियों को खतरा होने की बात कहकर उन्हें लाइब्रेरी में पढने से वंचित करने का विवविद्यालय प्रशासन का निर्णय मनमानीपूर्ण व असंवैधानिक था। कोर्ट ने कहा कि लिंग के आधार पर लड़कों व लड़कियों में भेदभाव संविधान के अनुच्छेद 14 व 15 का उल्लंघन है। यही नहीं कोर्ट ने कुलपति के उस फरमान पर भी कड़ी टिप्पणी कर गलत बताया है, जिसके द्वारा कुलपति ने छात्राओं के अभिभावकों को पत्र भेजकर कहा था कि यदि लड़कियां प्रतिबंधित समय में लाइबेरी में जाती है तो उसकी जिम्मेदारी अभिभावक स्वयं लेंगे।

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