Sunday, September 15, 2013

सेना भर्ती: दौड़ और बीम में दिखाना होगा दम


1600 मीटर की दौड़ और दमदार बीम से मिले अंक सैनिक जीडी व ट्रेड्समैन के पदों पर भर्ती में आपका मेरिट तय करेंगे।
तीन अक्तूबर से सेना भर्ती कार्यालय के अंतर्गत आने वाले जिलों के योग्य अभ्यर्थियों की रैली कानपुर छावनी में होगी।
सैन्य अधिकारिक सूत्रों की मानें तो लखनऊ व इसके आसपास के आठ जिलों के करीब 60 से 70 हजार अभ्यर्थी तीन से दस अक्तूबर तक होने वाली सेना भर्ती रैली में हिस्सा लेने के लिए कानपुर पहुंचेंगे। इसमें लखनऊ जिले के ही 20 हजार अभ्यर्थियों के शामिल होने की संभावना है।
लखनऊ छावनी में जुलाई 2013 में होने वाली पिछली रैली को खराब मौसम के कारण निरस्त करना पड़ा था। इसके बाद से लखनऊ सेना कार्यालय के अंतर्गत आने वाले अभ्यर्थियों का रैली में हिस्सा लेने का यह पहला मौका है।
सेना ने भी प्रतापगढ़ में पिछले दिनों हुई भगदड़ के बाद कानपुर में टोकन बांटते हुए सतर्कता बरतने के निर्देश दिए हैं। सेना भर्ती रैली की दौड़ में अव्वल आने वाले अभ्यर्थी लिखित परीक्षा तक के कई चरणों को पार करते हैं। दौड़ और बीम को मिलाकर फिजिकल परीक्षा 100 अंक की होती है।
सैनिक जीडी और ट्रेड्समैन की लिखित परीक्षा के बाद बनने वाली मेरिट में फिजिकल के मिले अंकों को भी शामिल किया जाता है।
ऐसे होगी भर्ती
कानपुर कैंट में तीन अक्तूबर को महोबा जिले की भर्ती रैली होगी। इसके अलावा चार अक्तूबर को कानपुर देहात, पांच को लखनऊ, छह को उन्नाव, सात को कानपुर नगर, आठ को बांदा, नौ को फतेहपुर और दस अक्तूबर को चित्रकूट जिलों के योग्य अभ्यर्थियों के लिए भर्ती रैली का आयोजन किया जाएगा।


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कनवर्जन कास्ट और मानदेय का मोबाइल पर पहुंचा मैसेज


रविवार, 15 सितंबर 2013
प्रतापगढ़। बेसिक शिक्षा विभाग ने पारदर्शिता बरतते हुए कनवर्जन कास्ट और मानदेय की रकम आनलाइन भेजा है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जब आनलाइन रुपये भेजने के साथ ही सभी शिक्षकों के मोबाइल पर एसएमएस भेजकर सूचना भी दी है। शनिवार को शिक्षकों के मोबाइल पर मैसेज पहुंचते ही राहत की सांस ली।
सर्वशिक्षा अभियान के तहत जिले के 2687 प्राइमरी, मिडिल और इंटर कालेजों में लागू एमडीएम योजना के लिए शनिवार को कनवर्जनकास्ट और रसोइया का मानदेय एमडीएम खाते में भेज दिया गया। जिले भर के स्कूलों के खाते में आनलाइन रुपये भेजने की व्यवस्था करने में विभाग पहली बार सफल हुआ है।
विभाग ने चार करोड़ 65 लाख रुपये कनवर्जनकास्ट और एक करोड़ 63 लाख रुपये रसोइया मानदेय के लिए भेजा है। एमडीएम खाते में अभी तक पहुंचने वाली धनराशि का विवरण नहीं दिया जाता था, मगर शिक्षकों के मोबाइल नंबर पर आए मैसेज में कितने रुपये कनवर्जनकास्ट और कितने रसोइया के मानदेय को देना है, स्पष्ट किया गया है।
खाते में धनराशि पहुंचने से ऊहापोह में रहने वाले शिक्षकों को अब बैंक के अधिकारी भी गुमराह नहीं कर पाएंगे। अभी तक रुपये भेजने के बाद भी बैंक के अफसर रुपये नहीं आने की बात कहकर शिक्षकों को परेशान करते थे। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी जय सिंह ने बताया कि पारदर्शिता बरतने के लिए आनलाइन धनराशि भेजी जा रही है।

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एक लाख से अधिक रिक्तियों को नियुक्तियों का इंतजार



युवाओं में बढ़ रही बेचैनी, हताशा और कुंठा
विडंबना :
नियुक्तियों के पेंच में फंसीं युवाओं की उम्मीदें
हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद
यह विडंबना ही है कि जिन युवाओं को केंद्र में रखकर समाजवादी पार्टी बहुमत से सत्ता में पहुंची थी, अब उसी सरकार में युवाओं के हिस्से हताशा, कुंठा और बेचैनी है। प्रदेश की लगभग एक लाख नौकरियां या तो किसी न किसी विवाद में फंसी हैं या फिर सरकार उन्हें आगे नहीं बढ़ाना चाहती। नौकरी देने वाली संस्थाएं भी उदासीनता की शिकार हैं। वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. कमलेश तिवारी कहते हैं-‘यह स्थिति खतरनाक है। इससे युवाओं का आत्मविश्वास कमजोर हो जाएगा। उनकी कार्यक्षमता पर भी खासा असर पड़ेगा।’
इंतजार और इंतजार : सूबे में 72 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति को ही लें। शुरू से ही इससे खिलवाड़ होता आया है। बसपा शासन में इन पदों पर नियुक्ति का फैसला लिया गया था। इसके लिए नियम भी बदले गए। सरकार गई तो इरादा गया। सपा शासन में नए सिरे से फार्म भराए गए। अभ्यर्थियों ने किसी एक नहीं बीस-बीस जिलों से आवेदन किया। हर जिले के लिए आवेदन शुल्क अलग से जमा करना पड़ा। बहुतों ने इसके लिए कर्ज भी ले डाला। नियुक्ति से पहले ही इतने पेंच फंसे कि मुकदमों की भरमार हो गई। अब भी मामला अदालत में है। यह तय किया जाना है कि मेरिट का आधार क्या हो। बसपा शासन में ही दरोगा भर्ती के चार हजार पदों के लिए विज्ञापन जारी हुआ था। इसमें सरकार ने परीक्षा के बीच में ही नियम बदल डाले। यह परीक्षा भी सिरे तक नहीं पहुंच सकी। विवादों में फंसी पीसीएस-2011 में मुख्य परीक्षा का रिजल्ट निकलने के एक माह बाद भी साक्षात्कार का इंतजार है। यही हाल लोअर-2008 और लोअर 2009 के 2000 पदों का भी है। इनकी मुख्य परीक्षा के परिणाम पांच और चार साल से लंबित हैं।
चयन बोर्ड बीमार, आयोग उदासीन :
इस लेटलतीफी का एक बहुत बड़ा कारण तो खुद सरकार की ही उपेक्षा है। माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में सदस्यों की कमी है। इसकी वजह से टीजीटी-पीजीटी की परीक्षा घोषित होने के बाद स्थगित करनी पड़ी। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का आलम यह है कि न अध्यक्ष की नियुक्ति हो पाई और न ही सदस्यों का कोरम ही पूरा है। चार साल से यह आयोग एक भी नियुक्तियां नहीं कर सका। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का आलम यह है कि यहां एक अदद सचिव तक नहीं दिया जा सका। उलटे-सीधे फैसलों ने आयोग की छवि को नुकसान अलग से पहुंचाया। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अयोध्या सिंह सवाल उठाते हैं-‘इस बात की पड़ताल होनी चाहिए कि आयोग में सीधी भर्ती की परीक्षाएं ही क्यों सरपट दौड़ती हैं।’
लाखों का भविष्य है दांव पर : इन परीक्षाओं में हो रहे विलंब ने कई लाख युवाओं में बेचैनी भर दी है। शायद ही कोई परीक्षा ऐसे ही जिसमें एक लाख से कम अभ्यर्थियों ने आवेदन किया हो।
प्राथमिक शिक्षकों में तो रिक्त पद ही 72 हजार से अधिक है। टीजीटी-पीजीटी-2011 के लिए आवेदन करने वालों की संख्या पांच लाख से अधिक है। दरोगा भर्ती परीक्षा का भी यही आलम है। कमोबेश यही स्थिति आयोग की परीक्षाओं की भी है। लोअर की प्रारंभिक परीक्षाओं का रिजल्ट आ चुका है। इसके बावजूद हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य मुख्य परीक्षा का परिणाम न आने से अधर में है

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पीसीएस-2011 इंटरव्यू का कार्यक्रम जारी


•अमर उजाला ब्यूरो
इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने पीसीएस-2011 मुख्य परीक्षा के साक्षात्कार का कार्यक्रम जारी कर दिया है। साक्षात्कार 29 अक्तूबर से शुरू होकर तीन दिसंबर तक चलेगा। साक्षात्कार 389 पदों के लिए होगा। आयोग के इस घोषणा के साथ ही मुख्य परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों का इंतजार तथा इसको लेकर बनी असमंजस की स्थिति दूर हो गई है।
बोर्ड की मई हुई बैठक में आयोग की भर्तियों में हर चरण में आरक्षण लागू करने का फैसला हुआ था लेकिन इसके खिलाफ प्रदेश व्यापी आंदोलन हुआ। इसके बाद आयोग को फैसला पलटना पड़ा। इस से वजह से मुख्य परीक्षा का संशोधित रिजल्ट भी घोषित करना पड़ा।
आमतौर पर रिजल्ट के साथ साक्षात्कार की तिथि घोषित कर दी जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। इससे अभ्यर्थियों में असमंजस की स्थिति रही। हालांकि अब सभी तरह की दुविधा दूर हो गई है। आयोग के कार्यक्रम के अनुसार साक्षात्कार 29, 30, 31 अक्तूबर , 11, 12, 13, 15, 16, 18, 19, 20, 21, 22, 23, 25, 26, 27, 28, 29 और 30 नवंबर तथा दो एवं तीन दिसंबर को होगा।
•29 अक्तूबर से तीन दिसंबर तक चलेगा साक्षात्कार

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तो नहीं मिल पाएगी इग्नू बीएड धारकों को नौकरी!

तो नहीं मिल पाएगी इग्नू बीएड धारकों को नौकरी!
रायबरेली, नगर संवाददाता : जूनियर विद्यालयों में सालों से गणित और विज्ञान विषय के शिक्षकों का टोटा रहा है। शिक्षकों के रिक्त पड़े पदों को भरने के लिए अगस्त माह में भर्तियां निकाली गई थी। इन भर्ती के लिए शिक्षकों को ऑनलाइन आवेदन करना है, लेकिन इग्नू से बीएड करने वाले आवेदकों के लिए नौकरी के दरवाजे बंद नजर आ रहे है।

जिले के अशोक मिश्रा, पूनम, छेदीलाल, अशोक कुशवाहा, संजय ने इग्नू से बीएड की परीक्षाएं पास की है। हाल में बेसिक शिक्षा विभाग में गणित और विज्ञान के शिक्षकों की भर्ती निकली। इस भर्ती में बीएड धारकों से आवेदन ऑनलाइन मांगे गए। फार्म भरने के बाद अंतिम रैगर में एक प्राप्तांक और पूर्णाक का ब्योरा मांगा गया। इग्नू की परीक्षाएं ग्रेड पर आधारित है। बीएड परीक्षा में सभी परीक्षार्थियों को प्राप्तांक और पूर्णांक देने के बजाय सिर्फ ग्रेड दे दिया गया। इस कारण इग्नू बीएड धारकों को आवेदन करने में समस्याएं आ रही है। इस संदर्भ में इग्नू बीएड धारकों ने दिल्ली में बने इग्नू के मुख्यालय मैदान गड़ी में जाकर डायरेक्टर को अपनी समस्याओं से रू-ब-रू कराया। समस्या को सुनने के बाद डायरेक्टर की ओर से सिर्फ प्रयोगात्मक और लिखित परीक्षा में हासिल हुए ग्रेड के आधार पर प्रतिशत में बदल दिया गया। इग्नू बीएड धारकों का कहना है कि प्रतिशत की जगह उन्हे प्राप्तांक और पूर्णाक दिए जाए। ऐसे में कई शिक्षकों की भर्ती निकली, लेकिन ग्रेड की समस्या के कारण इग्नू बीएड धारकों को रोजगार नहीं मिल सका।

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Saturday, September 14, 2013

UP Gram Panchayat Adhikari Recruitment Form


UP Gram Panchayat Adhikaree Recruitment
UP is going to recruit Gram Panchyat Adhikaree District wise 
See Advertisement for Recruitment of Gram Panchyata Adhikaree in Hamirpur District -
 Last Date : 7 October 2013

Download Form:


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See Local News Papers and Apply according to format specified by Department.
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PUBLIC INTEREST LITIGATION : Right to Education Act IN THE HIGH COURT OF JUDICATURE AT BOMBAY


Bombay  High  Court
                                                             1 of 5                                         PIL.105.2013
IN THE HIGH COURT OF JUDICATURE AT BOMBAY
CIVIL APPELLATE JURISDICTION
PUBLIC INTEREST LITIGATION NO.105 OF 2013
Arun Digambar Joshi Petitioner
versus
The State of Maharashtra and others Respondents
Mr.Samir A. Kumbhakoni for Petitioner.
Mr.S.K.Shinde, GP with Mr.A.B.Vagyani, AGP for State.
CORAM :  DR.D.Y.CHANDRACHUD AND
         S.C.GUPTE, JJ.
DATE     :   11 July 2013
PC  :
1. The Petitioner who is stated to be a director of an educational
institution at  Solapur  and in the field of  education for  nearly forty
three years, has challenged the constitutional validity of Section 16 of
the Right of Children to Free and Compulsory Education Act,  2009
(`The Right to Education Act').  Section 16 of the Right to Education
Act provides as follows :
"S.16  :   Prohibition of holding back and expulsion  :
No child admitted in a school shall be held back in any
class  or  expelled  from school  till  the  completion  of
elementary education."
The contention of the Petitioner is that  the restraint against  holding
back a child admitted to a school in any class till the completion of
elementary education,  has resulted in a deterioration of  educational
                                                                                                                
:                                                             2 of 5                                         PIL.105.2013
standards.  On this ground, it has been urged that the restraint that has
been  enacted  in  Section  16  is  violative  of  Article  21A of  the
Constitution.
2. The Right to Education Act was enacted in order to provide for
free and compulsory education to all the children between the ages 6
and 14.  Article 21A of the Constitution was inserted by the Eighty
Sixth Amendment in 2002.  Article 21 A stipulates that the State shall
provide free and compulsory education to all the children between the
ages 6 and 14 in such a manner as the State may, by law, determine.
The  Act  defines  `elementary  education'  in  Section  2(f)  to  mean
education from the first class to the eighth class.  A `child' is defined
by Section 2(c) to mean a male or female child of the age of six to
fourteen years.   Section 3 provides a right  of  free and compulsory
education to every child in a neighbourhood school till the completion
of elementary education.   Section 8 casts a duty on the appropriate
Government to provide free and compulsory elementary education to
every child.   Similar duties are cast  on every local  authority under
Section 9.
3. The prohibition which has been enacted in Section 16 of the
Act  against  holding back a child and the expulsion of a child from
school until the completion of elementary education, is in pursuance
of  the legislative policy of  ensuring universal  access to elementary
education to all children between the ages of six and fourteen.  A child
who is  held back for  want  of  an adequate `performance',  assessed
generally with reference to conventional evaluation methods such as
                                                                                                                
:                                                            3 of 5                                         PIL.105.2013
examinations is placed in a position of disadvantage in relation to his
or her peers.  A child who is held back and not allowed to progress to
the  next  standard  suffers  from an  intense  psychological  trauma
resulting in a loss of self worth by being unable to attain the same
level  of proficiency as his or her peers and friends.   This does not
reflect a failure of the child but the inability of the teacher to address
the needs of  the child.   The child is being conditioned by a social
system which provides a disadvantaged environment.  The Act  casts
an  obligation  on  teachers  in  Section  24(d)  to  assess  the  learning
ability  of  each  child  and  to  accordingly  supplement  additional
instructions as are required.   The Act  casts obligations on the State
and  upon  local  authorities,  schools  and  teachers  to  contribute  in
providing  meaningful  access  to  primary  education  on  a  universal
basis to all children between the ages of six and fourteen until they
complete  elementary  education.   The  obligation  of  doing  so  is
assumed by the State.   As a necessary corollary,  a child who is a
victim of  a social  handicap,  is  protected against  the imposition of
measures such as holding back or expulsion, which are liable to result
in a loss of identity and add to prejudices.   Children constitute the
building  blocks  of  society  and  define  the  future  of  the  nation.
Impressionable and vulnerable,  children have to be moulded for the
future  by  allowing  them to  grow  up  in  an  environment  which
promotes creativity, encourages a search for their intrinsic talents and
fosters respect  for diversity and inclusion.   To hold back a child or
expel a child from elementary school is wrong because it transfers the
duty  of  an  enabling  school  environment  from the  teacher  to  the
taught.  On the contrary, to render the Act responsive to the needs of
                                                                                                                
                                                            4 of 5                                         PIL.105.2013
our young, teachers have to be evaluated periodically and their skills
have to be upgraded by the State by a continuous process of learning.
Far  from  violating  Article  21A,  as  the  Petitioner  asserts,  the
provisions of Section 16 advance its object.
4. It  is  a  matter  of  common  knowledge  that  in  many  cases
children are held back as a result  of the inability of the parents to
shoulder  the  financial  burden of  education for  the  children in the
family.   Parliament was evidently conscious of these social  realities
and the provision has, therefore, been carefully enacted to ensure that
children are not victims of an unequal social system.  If a child needs
special attention, a duty is cast upon the teacher and the institution to
take all measures.  The underlying principle is that a child should not
be penalized for a situation on which he or she possibly can have no
control.   The submission that  this would lead to a deterioration of
academic  standards,  is  untenable.   First  and  foremost,  the  term
"academic standards" is itself capable of more than one meaning and
content.  To assess education merely in terms of the proficiency in an
examination is to adopt  an extremely narrow view of the object  of
education.   Education  particularly  at  the  elementary  level  must
emphasise the need to encourage a child into a holistic pattern of
development which is ethical and value based.
5. For these reasons, we are of the view that the policy which is
embodied in Section 16 was  one which fell  within the domain of
Parliament  as an enacting body.   It  would be impermissible for the
Court in the exercise of its writ jurisdiction to reassess the wisdom of
                                                                                                                
::
                                                             5 of 5                                         PIL.105.2013
the policy adopted by the Parliament which in any event is both fair
and proper. We are, however, of the view that the State must ensure a
process  of  continuous  evaluation  of  teachers  and  put  in  place  a
scheme  for  upgrading  skills  for  teachers.  For  these  reasons,  we
dismiss the petition.  There shall be no order as to costs.
(DR.D.Y.CHANDRACHUD, J.)
            (S.C.GUPTE, J.)
MST


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PUBLIC INTEREST LITIGATION : RIGHT TO EDUCATION to FILL PRIMARY / UPPER PRIMARY POSTS IN UP

 
HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD 


?Court No. - 32

Case :- PUBLIC INTEREST LITIGATION (PIL) No. - 34647 of 2013

Petitioner :- Subhash Chandra Tewari
Respondent :- State Of U.P. And 5 Others
Counsel for Petitioner :- Rajesh Kumar Singh
Counsel for Respondent :- C.S.C.,Jai Ram Pandey

Hon'ble Sunil Ambwani,J.
Hon'ble Surya Prakash Kesarwani,J.
The petitioner is working as Asstt. Teacher in Purva Madhyamik Vidyalaya Purvajagir Vikash Khand Kone, Distt. Mirzapur.
By this writ petition filed in public interest he has prayed for directions to the respondent authorities to fulfill the mandate of Right of Children to Free and Compulsory Education Act, 2009 as well as the mandate of the 86th Constitutional Amendment inserting Art.21A by providing proportionate number of teachers in the Primary and Upper Primary Schools in Distt. Mirzapur. It is submitted by learned counsel for the petitioner that by indiscriminate posting and transfers for questionable reasons the District Basic Education Officer, Mirzapur has created a situation in which a large number of schools are not having any teachers, whereas in some schools in urban areas on account of absorption/ transfer/ posting, more than sufficient number of teachers have been posted.
It is admitted to the petitioner that there are large number of vacancies of teachers in Primary Schools on account of failure of the State Government to hold Teachers Eligibility Test, in time. There were large number of complaint in earlier Teachers Eligibility Test held by the State Government on which the State Government has taken a stand and amended the rules providing that any person, who has passed TET, if he is otherwise qualified is eligible to be appointed as Asstt. Teacher in Primary Schools and Upper Primary Schools.
The prayers for posting proportionate number of teachers in all the schools is in public interest to protect the fundamental rights of children guaranteed under Art.21A of the Constitution of India as secured by the Act of 2009.�
Let the respondents file counter affidavit giving number of teachers, posted in the schools at Mirzapur, giving details of the schools, number of students, number of sanctioned posts and the number of teachers posted on such posts.
In the meantime, the District Basic Education Officer, Mirzapur will ensure that the teachers are posted in the Primary Schools and Upper Primary Schools in such numbers, that atleast one teacher is posted in every school, until regular appointments are made.
List on 23rd July, 2013.
Order Date :- 27.6.2013
SP/

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