युवाओं में बढ़ रही बेचैनी, हताशा और कुंठा
विडंबना :
नियुक्तियों के पेंच में फंसीं युवाओं की उम्मीदें
हरिशंकर मिश्र, इलाहाबाद
यह विडंबना ही है कि जिन युवाओं को केंद्र में रखकर समाजवादी पार्टी बहुमत से सत्ता में पहुंची थी, अब उसी सरकार में युवाओं के हिस्से हताशा, कुंठा और बेचैनी है। प्रदेश की लगभग एक लाख नौकरियां या तो किसी न किसी विवाद में फंसी हैं या फिर सरकार उन्हें आगे नहीं बढ़ाना चाहती। नौकरी देने वाली संस्थाएं भी उदासीनता की शिकार हैं। वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डा. कमलेश तिवारी कहते हैं-‘यह स्थिति खतरनाक है। इससे युवाओं का आत्मविश्वास कमजोर हो जाएगा। उनकी कार्यक्षमता पर भी खासा असर पड़ेगा।’
इंतजार और इंतजार : सूबे में 72 हजार प्राथमिक शिक्षकों की नियुक्ति को ही लें। शुरू से ही इससे खिलवाड़ होता आया है। बसपा शासन में इन पदों पर नियुक्ति का फैसला लिया गया था। इसके लिए नियम भी बदले गए। सरकार गई तो इरादा गया। सपा शासन में नए सिरे से फार्म भराए गए। अभ्यर्थियों ने किसी एक नहीं बीस-बीस जिलों से आवेदन किया। हर जिले के लिए आवेदन शुल्क अलग से जमा करना पड़ा। बहुतों ने इसके लिए कर्ज भी ले डाला। नियुक्ति से पहले ही इतने पेंच फंसे कि मुकदमों की भरमार हो गई। अब भी मामला अदालत में है। यह तय किया जाना है कि मेरिट का आधार क्या हो। बसपा शासन में ही दरोगा भर्ती के चार हजार पदों के लिए विज्ञापन जारी हुआ था। इसमें सरकार ने परीक्षा के बीच में ही नियम बदल डाले। यह परीक्षा भी सिरे तक नहीं पहुंच सकी। विवादों में फंसी पीसीएस-2011 में मुख्य परीक्षा का रिजल्ट निकलने के एक माह बाद भी साक्षात्कार का इंतजार है। यही हाल लोअर-2008 और लोअर 2009 के 2000 पदों का भी है। इनकी मुख्य परीक्षा के परिणाम पांच और चार साल से लंबित हैं।
चयन बोर्ड बीमार, आयोग उदासीन :
इस लेटलतीफी का एक बहुत बड़ा कारण तो खुद सरकार की ही उपेक्षा है। माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में सदस्यों की कमी है। इसकी वजह से टीजीटी-पीजीटी की परीक्षा घोषित होने के बाद स्थगित करनी पड़ी। उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग का आलम यह है कि न अध्यक्ष की नियुक्ति हो पाई और न ही सदस्यों का कोरम ही पूरा है। चार साल से यह आयोग एक भी नियुक्तियां नहीं कर सका। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग का आलम यह है कि यहां एक अदद सचिव तक नहीं दिया जा सका। उलटे-सीधे फैसलों ने आयोग की छवि को नुकसान अलग से पहुंचाया। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अयोध्या सिंह सवाल उठाते हैं-‘इस बात की पड़ताल होनी चाहिए कि आयोग में सीधी भर्ती की परीक्षाएं ही क्यों सरपट दौड़ती हैं।’
लाखों का भविष्य है दांव पर : इन परीक्षाओं में हो रहे विलंब ने कई लाख युवाओं में बेचैनी भर दी है। शायद ही कोई परीक्षा ऐसे ही जिसमें एक लाख से कम अभ्यर्थियों ने आवेदन किया हो।
प्राथमिक शिक्षकों में तो रिक्त पद ही 72 हजार से अधिक है। टीजीटी-पीजीटी-2011 के लिए आवेदन करने वालों की संख्या पांच लाख से अधिक है। दरोगा भर्ती परीक्षा का भी यही आलम है। कमोबेश यही स्थिति आयोग की परीक्षाओं की भी है। लोअर की प्रारंभिक परीक्षाओं का रिजल्ट आ चुका है। इसके बावजूद हजारों अभ्यर्थियों का भविष्य मुख्य परीक्षा का परिणाम न आने से अधर में है
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