वर्ष 2011 में मायावती सरकार द्वारा शुरू की गई
72,825 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू से कदम-कदम पर हिचकोले खाती रही
है। यह प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में जरूर है किंतु अब भी पूरी कब होगी, यह
कहना कठिन है। आंदोलनों और कानूनी अड़चनों के बाद अंतिम चरण तक पहुंची इस
कवायद में बहुत खामियां और दुश्वारियां रही हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा
अंतिम निर्णय किए जाने के बाद ही अभ्यर्थियों के चेहरों पर चमक आई। इससे
पहले चार दिसंबर 2012 को तत्कालीन मंत्रिमंडल ने शिक्षकों की भर्ती
के लिए उप्र बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली 1981 में संशोधन के
प्रस्ताव को मंजूरी दी थी।
इस संशोधन के तहत परिषदीय स्कूलों में प्रशिक्षु
शिक्षक भर्ती करने और प्रशिक्षण के बाद उन्हें सहायक अध्यापक की नियुक्ति
देने का प्रावधान जोड़ा गया। बढ़ती बेरोजगारी और लंबे अर्से से सरकारी
भर्तियों पर लगी रोक से राहत मिलने के बाद बंपर भर्ती का यह मौका युवाओं के
लिए बेहद अहम था। लाखों ने आवेदन किए और फिर उनकी उम्मीदें उड़ान भरने
लगीं लेकिन परीक्षा में नित नए अवरोध युवाओं के लिए किसी सदमे से कम न थे।
काउंसिलिंग के दौरान भी अव्यवस्थाओं का दौर रहा। सोमवार को अधिकांश जिलों
में नियुक्ति पत्र वितरण का काम भी शुरू हो गया लेकिन अभी ऐसी नहीं लगता कि
यह चयन प्रक्रिया 2015 में पूरी हो पाएगी। सबसे ज्यादा रिक्तियों वाले
सीतापुर और लखीमपुर में ही नियुक्ति पत्र वितरण का काम अभी तक शुरू नहीं हो
पाया है।1जो भी हो, देर-सबेर यह चयन प्रक्रिया पूरी होगी ही। बड़ी बात यह
है कि प्रदेश सरकार भविष्य में होने वाली भर्ती प्रक्रिया को आसान बनाने की
कोशिश करेगी या नहीं। राजनीतिक दल और उनसे बंधी सरकारें अपने हितों को
ज्यादा अहमियत देती हैं, यह चयन प्रक्रिया इसका बड़ा उदाहरण है। चुनावी
वर्ष से ठीक पहले मायावती ने बहत्तर हजार से ज्यादा भर्तियों की घोषणा कर
सोचा था कि अगले चुनाव में उन्हें इसका लाभ मिलेगा पर ऐसा हो न सका।
मतदाताओं ने समाजवादी पार्टी को आजमाया और शायद अब यह सरकार भी चाहती है कि
भर्ती प्रक्रिया चुनावी वर्ष तक चले ताकि जनता को यह बता कर लाभ लिया जा
सके। राजनीतिक दलों को यह समझ लेना चाहिए कि जनता सब जानती है। चुनाव के
समय बड़े निर्णय दलों को लाभ नहीं देंगे बल्कि लगातार होने वाले काम ही
सरकार को लोकप्रियता देंगे।
By Guddu Singh
No comments:
Post a Comment