लखनऊ। शुल्क प्रतिपूर्ति की भरपाई में गड़बड़ करने वाले संस्थानों के मामले में नियमित सुनवाई के लिए ऑनलाइन सॉफ्टवेयर विकसित किया जाएगा। इसके लिए राज्य सरकार ने राष्ट्रीय विज्ञान केंद्र (एनआईसी) की राज्य इकाई को निर्देश जारी कर दिए हैं। इस बाबत योजना भवन स्थित एनआईसी के दफ्तर में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं।
दशमोत्तर छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना में एक के बाद एक घपले सामने आने के बाद हाईकोर्ट ने संबंधित विभागों के खिलाफ न सिर्फ कड़ी टिप्पणी की थी, बल्कि सीबीआई से जांच कराने की चेतावनी भी दी थी। इसी का असर है कि योजना में पारदर्शिता लाने के लिए सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। राज्य सरकार ने फैसला किया है कि गलत आवेदनपत्र अग्रसारित करने वाले संस्थानों को पांच साल के लिए काली सूची में डाल दिया जाएगा। उनकी मान्यता रद्द करने की कार्रवाई भी की जाएगी।
चूंकि छात्रवृत्ति और शुल्क प्रतिपूर्ति योजना पूरी तरह से ऑनलाइन कर दी गई है, इसलिए शासन ने अनियमितताओं की सुनवाई भी ऑनलाइन करने की योजना बनाई है। एनआईसी की राज्य इकाई के अफसरों को कहा गया है कि वे इसके लिए जरूरी सॉफ्टवेयर विकसित करें। इस सॉफ्टवेयर के माध्यम से अधिकृत वेबसाइट पर गड़बड़ में लिप्त संस्थानों के मामले में हुई सुनवाई का ब्यौरा उपलब्ध रहे। ऐसा होने पर कोई भी संस्थान जांच की प्रक्रिया से बच निकलने का तरीका नहीं ढूंढ पाएगा। साथ ही उच्चाधिकारियों को समीक्षा में भी आसानी होगी। एनआईसी के एक अधिकारी ने नाम न छापने के अनुरोध के साथ बताया कि सॉफ्टवेयर के माध्यम से गड़बड़ करने वाले संस्थानों का डाटा अलग कर लिया जाएगा। फिर आगे की कार्यवाही के लिए यह डाटा संबंधित विभाग को उपलब्ध करा दिया जाएगा। इस बाबत प्रमुख सचिव (समाज कल्याण) सुनील कुमार ने बताया कि संस्थानों को काली सूची में डालने संबंधी सभी प्रकरणों की नियमित सुनवाई के लिए भी ऑनलाइन पारदर्शी व्यवस्था की जा रही है।
अमर उजाला ब्यूरो
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