योग्य सड़क पर अयोग्य हो रहे अध्यापक हरियाणा की गल्ती यूपी में भी
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बसपा शासन काल के दौरान सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का फरमान जारी हुआ और उसकी अर्हता के तौर पर टीईटी को मान्य माना गया। एक साथ 72,825 पदों के लिए आवेदन निकाले गए और प्रदेश के सभी जिलों में इनको एक साथ भरने की सहूलियत दी गई।
इसे उन होने वाले सहायक अध्यापकों का दुर्भाग्य कहिए या कुछ और नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही बसपा सरकार चलती बनी और फिर नई सरकार ने प्रदेश को अपने आगोश में ले लिया। नई सरकार ने बसपा सरकार में निकाले गए 72,825 पदों पर आवेदनों को मान्य तो किया लेकिन उसकी योग्यता को बदल दिया और फिर नए सिरे से फॉर्मों को भरने के आदेश जारी हो गए। बसपा सरकार में भी इन्हीं पदों के लिए लगभग साढ़े छह लाख आवेदन हुए थे। उसके बाद अब नई सपा सरकार में नियम बदल जाने की वजह से फिर नए सिरे से लगभग साढ़े छह लाख फार्म जमा हुए। इस प्रक्रिया में दोनों ही सरकारों को कई करोड़ का राजस्व मिला लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया जहां की तहां पड़ी रह गई। सपा सरकार में उसकी योग्यता को लेकर हुए बदलाव पर टीईटी पास योग्य शिक्षकों ने कोर्ट की शरण ले ली और यह नियुक्ति कोर्ट के पचड़े में जाकर फंस गई। लगातार तीन सालों तक सरकार और टीईटी पास इन सहायक अध्यापकों के बीच कानूनी लड़ाई चलती रही। ऐसे करते कराते अंततोगत्वा यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गई।
इसे उन होने वाले सहायक अध्यापकों का दुर्भाग्य कहिए या कुछ और नियुक्ति प्रक्रिया शुरू होने के पहले ही बसपा सरकार चलती बनी और फिर नई सरकार ने प्रदेश को अपने आगोश में ले लिया। नई सरकार ने बसपा सरकार में निकाले गए 72,825 पदों पर आवेदनों को मान्य तो किया लेकिन उसकी योग्यता को बदल दिया और फिर नए सिरे से फॉर्मों को भरने के आदेश जारी हो गए। बसपा सरकार में भी इन्हीं पदों के लिए लगभग साढ़े छह लाख आवेदन हुए थे। उसके बाद अब नई सपा सरकार में नियम बदल जाने की वजह से फिर नए सिरे से लगभग साढ़े छह लाख फार्म जमा हुए। इस प्रक्रिया में दोनों ही सरकारों को कई करोड़ का राजस्व मिला लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया जहां की तहां पड़ी रह गई। सपा सरकार में उसकी योग्यता को लेकर हुए बदलाव पर टीईटी पास योग्य शिक्षकों ने कोर्ट की शरण ले ली और यह नियुक्ति कोर्ट के पचड़े में जाकर फंस गई। लगातार तीन सालों तक सरकार और टीईटी पास इन सहायक अध्यापकों के बीच कानूनी लड़ाई चलती रही। ऐसे करते कराते अंततोगत्वा यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गई।
सुप्रीम कोर्ट में भी काफी जिरह के बाद टीईटी पास सहायक अध्यापकों के पक्ष में अंतरिम आदेश आया और सरकार को सख्त आदेश जारी हुआ कि वह टीईटी को अर्ह मानकर 72,825 पदों पर काउंसिलिंग की प्रक्रिया तेजी से शुरू करें। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद सरकार के पास कोई चारा नहीं बचा और मजबूरन उन्हें काउंसिलिंग शुरू करानी पड़ी लेकिन सरकार भी ढीठ साबित हुई। सरकार के सहयोग से ही लगभग सभी डायटों पर काउंसिलिंग के तौरान फर्जी टीईटी पास आवेदकों की भीड़ जमा होने लगी। नतीजतन जहां ऐसा माना जा रहा था कि इस नियुक्ति में टीईटी में साठ प्रतिशत अंक पाने वाले सभी आवेदक अध्यापक बन जाएंगे लेकिन धांधली के चलते यह सारे योग्य आवेदक बाहर सड़कों की धूल फांक रहे हैं और फर्जी आवेदक बड़े ही शान से अपनी काउंसिलिंग कराते जा रहे हैं। इस बात की शिकायत टीईटी मोर्चा संघ ने कई बार बड़े अधिकारियों के सामने रखी लेकिन उन अधिकारियों से मिलने वाले जवाबों से हर कोई हतप्रभ दिखा। कहीं किसी ने कहा कि कोई धांधली नहीं हो रही तो कहीं किसी अधिकारी ने यह तक कह डाला। जो हो रहा है होने दीजिए अन्यथा फिर यह प्रक्रिया लटक जाएगी। अगर इन अधिकारियों की मानें तो इन्होंने साफ-साफ कहा कि धांधली हो रही है तो होने दीजिए। उसमें ज्यादा हस्तक्षेप मत करें अन्यथा काउंसिलिंग प्रक्रिया फिर से लटक जाएगी। इन बातों से यह तो साफ हो गया कि सहायक अध्यापकों की काउंसिलिंग में होने वाली धांधली की जानकारी बड़े अधिकारियों से लेकर सरकार तक को है लेकिन शायद इसलिए चुप्पी बनाए हुए हैं कि यह धांधली भी स्वयं सरकार की ही देन है।
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