नई
दिल्ली: नौकरशाही में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में
आदेश दिया है कि प्रशासनिक अफसरों के तबादले और पदोन्नति के लिए प्रत्येक
राज्य और केंद्र को सिविल सर्विस बोर्ड गठित करना चाहिए और ये बोर्ड तीन
महीने के भीतर गठित किए जाएं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि प्रशासनिक अफसर मौखिक निर्देशों का पालन करते भी हैं, तो उन्हें लिखित में दर्ज करें, वरना आरटीआई का उद्देश्य नाकाम हो जाएगा। यदि प्रशासनिक अफसर मौखिक निर्देशों का पालन करते हैं, तो इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा, इसलिए प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए उच्चाधिकारियों के निर्देश लिखित में ही होने चाहिए।
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पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रह्मण्यम समेत 82 पूर्व नौकरशाहों ने
नौकरशाही में सुधार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी।
याचिका में कहा गया था कि राजीनितक हस्तक्षेप की वजह से अधिकारी कोई कदम
नहीं उठा पाते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि नौकरशाह सरकार से कोई भी आदेश
मौखिक नहीं, बल्कि लिखित में लें।
कोर्ट ने कहा कि नौकरशाहों को बार-बार ट्रांसफर किए जाने से बचा जाना
चाहिए, ताकि सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से सचमुच गरीब
लोगों को फायदा हो सके। संसद से भी कहा गया कि वह इसके लिए कानून बनाए और
जब तक ऐसा कानून नहीं बना दिया जाता, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन
किया जाए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि प्रशासनिक अफसर मौखिक निर्देशों का पालन करते भी हैं, तो उन्हें लिखित में दर्ज करें, वरना आरटीआई का उद्देश्य नाकाम हो जाएगा। यदि प्रशासनिक अफसर मौखिक निर्देशों का पालन करते हैं, तो इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा, इसलिए प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए उच्चाधिकारियों के निर्देश लिखित में ही होने चाहिए।
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