लखनऊ
(ब्यूरो)। देश के पांच में से चार स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग
प्रसाधन नहीं है। हर तीसरे स्कूल में पीने के लिए पानी तक नहीं मिल रहा है।
यूपी सहित देशभर में बच्चों को शिक्षा से
जोड़ने के लिए आधारभूत संरचनाएं उपलब्ध करवाने में सरकारें किस कदर असफल
रही हैं, यह एक गैर सरकारी संगठन क्राई (चाइल्ड राइट्स एंड यू) द्वारा हाल
में किए गए सर्वे के नतीजों में सामने आया है।
सर्वे
में सवाल उठाया गया है कि इन हालात में अभिभावक अपने बच्चों, खासतौर से
लड़कियों को स्कूल कैसे भेजेंगे? सुरक्षा की चिंता और स्कूल के हालात
उन्हें अपने बच्चों को स्कूल से जोड़ने से रोक रहे हैं, जो सीधे तौर पर देश
की साक्षरता दर को प्रभावित कर रहा है।
हर
बच्चे को मुफ्त और गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का मौलिक अधिकार देने के लिए
राइट टू एजूकेशन (आरटीई) एक्ट 2009 लागू किया गया था। इसकी जमीनी हकीकत
जानने के लिए क्राई ने वर्ष 2012 में देश के 13 राज्यों के 71 शहरों में
‘लर्निंग ब्लॉक्स’ नामक सर्वे कराया था। इसकी रिपोर्ट पर क्राई की सीईओ
पूजा मारवाहा का कहना है कि अगर स्कूलों में टॉयलेट्स नहीं होंगे, बच्चों
को पीने का पानी नहीं मिलेगा, शिक्षक नहीं मिलेंगे तो उन्हें स्कूल में आने
के लिए कैसे प्रेरित किया जा सकेगा? वे कहती हैं कि आज भी एक बड़े तबके
में यह सोच कायम है कि बच्चे को स्कूल भेजना जरूरी नहीं है बल्कि उसे
आजीविका चलाने के लिए कोई हुनर सिखाया जाना चाहिए।
सर्वे रिपोर्ट पर एक नजर
•11
प्रतिशत स्कूलों में टॉयलेट्स नहीं हैं। सिर्फ 18 प्रतिशत स्कूलों में
लड़कियों के लिए अलग टॉयलेट है। 34 प्रतिशत स्कूलों में बने टॉयलेट उपयोग
के लायक नहीं हैं। 49 प्रतिशत स्कूलों में स्टाफ और बच्चों के लिए साझा
टॉयलेट्स हैं।
क्राई ने किया उत्तर प्रदेश सहित 13 राज्यों के 71 जिलों में सर्वे
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