- अदालती जीत के बाद भी नौकरी को तरस रहे सहायक अध्यापक
बावजूद
इसके अखिलेश सरकार
की मंशा इन्हें
नौकरी देने की
नहीं दिख रही।
ढाई लाख अभ्यर्थी
और उनसे जुड़े
उनके परिवार अखिलेश
सरकार की मंशा
से एक तरफ
जहां आहत हैं
वहीं इस सरकार
को जड़ से
उखाड़ फेंकने की
फिराक में दिख
रहे हैं। सरकार
की यही दशा
रही तो आने
वाले समय में
जो स्थिति बहुजन
समाज पार्टी की
हुई। कहीं उससे
बुरी स्थिति समाजवादी
पार्टी को भी
देखनी पड़ सकती
है। नवम्बर 2011 से
अब तक लगातार
सहायक अध्यापकों को
सिवाय ठोकरों के
कुछ भी नसीब
नहीं हुआ।
हां
इतना जरूर है
कि इस नौकरी
के नाम पर
बसपा और सपा
दोनों सरकारों ने
मिलकर गरीब से
गरीब आवेदक का
खून चूसा और
साथ ही साथ
उसका पूरा पैसा
भी।
जनवरी
2015 में काउंसिलिंग का वीभत्स
खेल खेलते हुए
समाजवादी सरकार ने इसी
काउंसिलिंग के नाम
पर अब तक
कईयों की जीवन
लीला भी समाप्त
कर चुकी है।
9, 10 और 11 जनवरी को होने
वाले चतुर्थ काउंसिलिंग
को इस कदर
पेचीदा बना दिया
सरकार ने कि
जिन्होंने पहली, दूसरी और
तीसरी काउंसिलिंग करा
ली थी वह
भी एक अनहोनी
और भय के
चलते चौथी काउंसिलिंग
में भी मजबूरन
हिस्सा लिया। आलम यह
था कि चतुर्थ
काउंसिलिंग के नाम
पर हर डायटों
पर वही मंजर
दिखाई दिया जो
पहली काउंसिलिंग में
देखने को मिला
था। तीन दिन
में प्रदेश के
सहायक अध्यापक बनने
की अभिलाषा रखने
वाले इन ढाई
लाख टीईटी पास
सहायक अध्यापक हाड़
कंपा देने वाली
ठंड में भी
पूरे प्रदेश का
भ्रमण करते हुए
अनेक जिलों में
अपनी काउंसिलिंग करवाई।
काउंसिलिंग पद्धति को देखते
हुए सभी अभ्यर्थियों
के मन में
एक नया खौफ
देखने को मिला।
क्योंकि काउंसिलिंग जिस ढंग
से की जा
रही थी उसे
देखकर कत्तई नहीं
लग रहा था
कि यह काउंसिल
नौकरी देने के
लिए की जा
रही है। हर
जिले पर अलग-अलग नियम
अभ्यर्थियों द्वारा जमा कराए
जा रहे प्रमाण
पत्रों की कोई
रिसीविंग नहीं, और तो
और तृतीय काउंसिलिंग
के बाद ज्यादातर
जिलों में सीटें
भी नहीं थीं।
फिर भी चतुर्थ
काउंसिल बेखौफ-बेधड़ल्लेकी जा
रही थी।
चतुर्थ
कांउसिलिंग ने लोगों
को सरकार के
प्रति सोचने पर
मजबूर कर दिया
कि समाजवादी सरकार
किसी भी हालत
में 72,825 या यूं
कहें कि प्रदेश
में रिक्त पड़े
लगभग तीन लाख
सहायक अध्यापकों के
पदों को भरने
में कोई रुचि
नहीं दिखा रही।
यह जो कुछ
भी हो रहा
है सिर्फ और
सिर्फ सुप्रीम कोर्ट
के कोप से
बचने के लिए
सरकार कर रही
है।
इसमें
भी सरकार ने
इतना तो जरूर
मन बना लिया
है कि न
हम नौकरी देंगे,
न कोर्ट से
सजा भुगतेंगे, बल्कि
आवेदकों से हर
पल पैसे की
उगाही जरूर करेंगे।
चतुर्थ काउंसिलिंग में जिस
तरह से उन
सभी अभ्यर्थियों को
भी मौका दे
दिया गया जिन्होंने
पहले तीन काउंसिलिंगों
में अपनी काउंसिलिंग
करा ली थी
वह यही बताता
है कि सरकार
की मंशा सहायक
अध्यापकों के प्रति
न सहानुभूति का
है और न
ही नौकरी देने
का।
अगर
सुप्रीम कोर्ट पर ध्यान
दें तो हाल
में जो अंतरिम
आदेश आया कि
टीईटी पास सामान्य
के उन सभी
70 प्रतिशत अंकों को पाने
वाले और आरक्षण
श्रेणी में 65 प्रतिशत अंक
पाने वालों को
सरकार तत्काल नियुक्ति
दे और छह
हफ्ते में शपथ
पत्र दाखिल कर
बताए कि उन्होंने
इनकी नियुक्ति कर
दी। यह आदेश
भी समझ से
परे लगा क्योंकि
तृतीय काउंसिलिंग तक
लगभग 5&000 पदों पर
काउंसिलिंग हो चुकी
थी और सामान्य
का अंक प्रतिशत
लगभग 80 से 8& प्रतिशत का
रहा। फिर 70 प्रतिशत
सामान्य वालों को 72,825 पदों
में नौकरी की
कौन सी उम्मीद
कोर्ट ने देख
ली थी। सही
मायने में सुप्रीम
कोर्ट के आदेश
की व्याख्या की
जाए तो वह
अंतरिम आदेश सिर्फ
72,825 पदों के लिए
न होकर प्रदेश
में खाली पड़े
तीन लाख पदों
के लिए था,
लेकिन प्रदेश की
सरकार सब कुछ
जानते समझते भी
जिस तरह से
टीईटी पास सहायक
अध्यापकों को नौकरी
के लिए टहला
रही है ठीक
उसी प्रकार सुप्रीम
कोर्ट को भी
उनके आदेश की
अवहेलना करते हुए
भी यह बताने
का प्रयास कर
रही है कि
हम कोर्ट के
आदेश का अक्षरश:
पालन कर रहे
हैं। सुप्रीम कोर्ट
के अंतरिम आदेश
ने बाकी हुए
तीन काउंसिलिंगों तक
के लिए मिलने
वाले नियुक्ति पत्र
पर भी एक
अड़ंगा साबित होगा क्योंकि
आदेश सामान्य के
70 प्रतिशत अंक और
आरक्षित के 65 प्रतिशत अंक
पाने वाले सभी
आवेदकों के लिए
है। न कि
ऊपर से अधिक
अंकों के प्रतिशत
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