देश
में शिक्षकों की
भारी कमी के
मद्देनजर उच्च शिक्षा
में गुणवत्ता के
गिरते स्तर को
लेकर परेशान केंद्र
सरकार ने राज्यों
को रिटायर्ड शिक्षकों
को दोबारा नौकरी
पर रखे जाने
की छूट देने
का मन बना
लिया है।
यही
नहीं शिक्षकों के
संकट को तत्काल
हल करने के
उद्देश्य से पीएचडी
कर चुके छात्रों
को भी अस्थायी
शिक्षक नियुक्त करने की
छूट राज्य सरकारों
को मिल सकती
है।
इसी
महीने दस अक्तूबर
को प्रस्तावित बैठक
में केंद्रीय शिक्षा
सलाहकार समिति इस संबंध
में कुछ ठोस
फैसले ले सकती
है।
पिछले
एक दशक में
देश में बड़े
पैमाने पर उच्च
शिक्षा के संस्थान
खुले, छात्रों की
संख्या भी एक
करोड़ 70 लाख तक
पहुंच गई। मगर
विस्तार के अनुपात
में शिक्षकों की
भर्ती नहीं हो
सकी। इसका सबसे
बुरा प्रभाव शिक्षा
के स्तर में
भारी गिरावट के
रूप में दिखने
लगा है।
देश
के विश्वविद्यालयों तथा
कालेजों में इस
समय 8.17 लाख शिक्षक
तैनात हैं जबकि
तीन लाख से
भी ज्यादा शिक्षकों
के पद खाली
पड़े हैं। उच्च
शिक्षा के विस्तार
की यह रफ्तार
कायम रही तो
वर्ष 2030 तक उच्च
शिक्षा में छात्रों
की संख्या 2.5 करोड़
तक पहुंच जाएगी।
राज्यों
के विश्वविद्यालयों तथा
महाविद्यालयों में शिक्षकों
की भारी कमी
है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों
में भी यही
हाल है। मगर
यहां पर शिक्षकों
के रिटायरमेंट की
अवधि 60 साल से
बढ़ाकर 65 साल कर
दिये जाने से
फौरी तौर पर
कुछ राहत मिल
गई है।
राज्य
सरकारों ने शिक्षकों
की रिटायर होने
की उम्र सीमा
बढ़ाने से इंकार
कर दिया है।
अब कैब की
बैठक में अवकाश
के बाद राज्यों
में शिक्षकों को
कांट्रेक्ट के आधार
पर दोबारा नियुक्ति
देने पर विचार
किया जाएगा।
यही
नहीं टीचर्स एंड
टीचिंग मिशन के
तहत उच्च शिक्षा
ग्रहण कर रहे
छात्रों को शिक्षक
पेशा के प्रति
आकर्षित करने के
लिए भी उपाय
किये जाने पर
राज्यों को जोर
देने को कहा
गया है।
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