प्राइमरी में जल्द आएंगे ढाई लाख पैराटीचर
अमर उजाला
इलाहाबाद। योजना को लागू करने में कोई बड़ी अड़चन न आई तो प्राथमिक स्कूलों के ताले खुल जाएंगे और एकल शिक्षक वाले स्कूलों का संकट भी दूर हो जाएगा। लंबे समय से प्राइमरी स्कूलों में नौकरी की बाट जोह रहे बीएड डिग्रीधारकों के लिए नया रास्ता खुल रहा है। बीटीसी की रिक्तियों को लेकर एनसीटीई से विवाद के बाद सर्व शिक्षा अभियान और एनसीएफ की टीम ने प्राइमरी स्कूलों में बेहतर शिक्षा के लिए नई योजना तैयार की है। तय किया गया है कि केरल और गुजरात की तर्ज पर प्रदेश में पहली बार प्राइमरी स्कूलों में पैराटीचर रखे जाएंगे। उसी प्रारूप पर पैराटीचर्स को १o हजार रुपये दिए जाएंगे।पैराटीचर ्स की भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को वरीयता दी जाएगी। साथ ही पांच साल या अधिक समय से शिक्षा मित्र के रूप में पढ़ाने वालों को भी मौका मिलेगा। पैराटीचर्स की नियुक्ति और उनके मानदेय को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सहमति दे दी है। एनसीटीई उत्तरी क्षेत्र के एक पूर्व सदस्य डॉ.एमके आहूजा को इस योजना का प्रभारी बनाया गया है। आहूजा पिछले दो दिन इलाहाबाद में थे और निदेशालय के कई अधिकारियों से मिल उन्होंने शिक्षकों-स्कूलो ं के बारे में ब्योरा जुटाया।नई योजना में उन विद्यालयों को भी शामिल किया जा रहा है जो शिक्षा का अधिकार के तहत नए खुल रहे हैं। निदेशालय के अधिकारियों ने आहूजा के साथ मिल जो रिपोर्ट शासन को भेजने के लिए तैयार की है, उसके मुताबिक प्राइमरी स्कूलों में पुराने मानक से 2 लाख ८८ हजार शिक्षकों की जरूरत है जबकि शिक्षा का अधिकार कानून में दर्ज मानक का पालन करने पर दो लाख ९२ हजार शिक्षकों की भर्ती करनी होगी। इसके अलावा पहले चरण में जो नए विद्यालय खोले जाने हैं, उनमें लगभग डेढ़ लाख शिक्षकों को रखना होगा।शिक्षा मित्रों को स्थाई करने पर सवा लाख पद भर जाएंगे। उसके बाद भी तीन लाख से अधिक पदों पर शिक्षकों की जरूरत होगी। बीएड धारकों के बारे में अब तक सरकार कोई फैसला नहीं कर सकी है और बीटीसी डिग्री धारक तैयार होने में कम से कम डेढ़ साल और लगेंगे। ऐसे में पैराटीचर्स को बेहतर विकल्प माना जा रहा है। डॉ. आहूजा के मुताबिक अप्रैल से शुरू सत्र में इसके लिए बजट का बड़ा हिस्सा रखने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर, मेरठ जैसे बड़ों शहरों में ही ७० फीसदी पद रिक्त हैं और बेहतर शिक्षा के लिए हर स्तर पर दबाव भी बढ़ रहा है, इसलिए योजना जल्द से जल्द लागू हो सकती है।
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इलाहाबाद। योजना को लागू करने में कोई बड़ी अड़चन न आई तो प्राथमिक स्कूलों के ताले खुल जाएंगे और एकल शिक्षक वाले स्कूलों का संकट भी दूर हो जाएगा। लंबे समय से प्राइमरी स्कूलों में नौकरी की बाट जोह रहे बीएड डिग्रीधारकों के लिए नया रास्ता खुल रहा है। बीटीसी की रिक्तियों को लेकर एनसीटीई से विवाद के बाद सर्व शिक्षा अभियान और एनसीएफ की टीम ने प्राइमरी स्कूलों में बेहतर शिक्षा के लिए नई योजना तैयार की है। तय किया गया है कि केरल और गुजरात की तर्ज पर प्रदेश में पहली बार प्राइमरी स्कूलों में पैराटीचर रखे जाएंगे। उसी प्रारूप पर पैराटीचर्स को १o हजार रुपये दिए जाएंगे।पैराटीचर ्स की भर्ती में बीएड डिग्री धारकों को वरीयता दी जाएगी। साथ ही पांच साल या अधिक समय से शिक्षा मित्र के रूप में पढ़ाने वालों को भी मौका मिलेगा। पैराटीचर्स की नियुक्ति और उनके मानदेय को लेकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सहमति दे दी है। एनसीटीई उत्तरी क्षेत्र के एक पूर्व सदस्य डॉ.एमके आहूजा को इस योजना का प्रभारी बनाया गया है। आहूजा पिछले दो दिन इलाहाबाद में थे और निदेशालय के कई अधिकारियों से मिल उन्होंने शिक्षकों-स्कूलो ं के बारे में ब्योरा जुटाया।नई योजना में उन विद्यालयों को भी शामिल किया जा रहा है जो शिक्षा का अधिकार के तहत नए खुल रहे हैं। निदेशालय के अधिकारियों ने आहूजा के साथ मिल जो रिपोर्ट शासन को भेजने के लिए तैयार की है, उसके मुताबिक प्राइमरी स्कूलों में पुराने मानक से 2 लाख ८८ हजार शिक्षकों की जरूरत है जबकि शिक्षा का अधिकार कानून में दर्ज मानक का पालन करने पर दो लाख ९२ हजार शिक्षकों की भर्ती करनी होगी। इसके अलावा पहले चरण में जो नए विद्यालय खोले जाने हैं, उनमें लगभग डेढ़ लाख शिक्षकों को रखना होगा।शिक्षा मित्रों को स्थाई करने पर सवा लाख पद भर जाएंगे। उसके बाद भी तीन लाख से अधिक पदों पर शिक्षकों की जरूरत होगी। बीएड धारकों के बारे में अब तक सरकार कोई फैसला नहीं कर सकी है और बीटीसी डिग्री धारक तैयार होने में कम से कम डेढ़ साल और लगेंगे। ऐसे में पैराटीचर्स को बेहतर विकल्प माना जा रहा है। डॉ. आहूजा के मुताबिक अप्रैल से शुरू सत्र में इसके लिए बजट का बड़ा हिस्सा रखने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी, लखनऊ, गोरखपुर, मेरठ जैसे बड़ों शहरों में ही ७० फीसदी पद रिक्त हैं और बेहतर शिक्षा के लिए हर स्तर पर दबाव भी बढ़ रहा है, इसलिए योजना जल्द से जल्द लागू हो सकती है।
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