Updated on: Mon, 16 Sep 2013 07:53 PM (IST)
कानपुर, शिक्षा संवाददाता: यह
त्रासदी डिग्री कालेजों के
उन मानदेय शिक्षकों
की है जिनकी
शासनादेश व अदालती
आदेश के बाद
भी नौकरी पक्की
नहीं हो रही।
मामले को पिछली
सरकार ने राजनीतिक
चश्मे से देखकर
धता बताई तो
वर्तमान सरकार वादाखिलाफी की
भंवर में उलझाए
हुए है। निराश
शिक्षकों को अब
न्यायालय के रास्ते
न्याय मिलने की
आशा है। उच्च
न्यायालय में दाखिल
उनकी अवमानना वाद
पर सोमवार को
सुनवाई होगी।
सहायता प्राप्त डिग्री कालेजों
में शिक्षकों की
कमी के चलते
शासन ने 1998 में
एक प्रक्रिया तय
करके विश्वविद्यालय अनुदान
आयोग द्वारा निर्धारित
अर्हता के लगभग
450 से अधिक शिक्षक
शिक्षिकाओं को नियुक्ति
दी। चयन व
अनुमोदन शासन द्वारा
नामित समिति से
किया गया। 2006 में
तत्कालीन सपा सरकार
ने संशोधन अधिनियम
पारित करके 2006 तक
निरंतर तीन वर्ष
की सेवा करने
वाले शिक्षकों को
विनियमित करने का
फैसला किया। इसके
खिलाफ 2006 के बाद
नियुक्त शिक्षकों ने न्यायालय
में वाद दाखिल
किया परंतु न्यायालय
ने एक्ट की
परिधि में आ
रहे शिक्षकों को
विनियमित करने पर
रोक नहीं लगाई।
इसके बाद सपा
सरकार चली गयी।
सुश्री मायावती के नेतृत्व
वाली सरकार ने
इस मामले को
राजनीतिक चश्मे से देखा
और फाइल गहरे
दफन हो गयी।
इधर सपा सरकार
लौटी तो शिक्षकों
को उम्मीद बंधी
क्योंकि सपा के
घोषणापत्र में इसका
वादा किया गया
था। शिक्षक तभी
से लगातार मांग
उठा रहे हैं।
वे दो बार
मुख्यमंत्री से भी
मिल चुके हैं
परंतु कोई कार्यवाही
नहीं हुई। इसी
बीच मानदेय शिक्षकों
की 179 याचिकाओं की संयुक्त
सुनवाई में न्यायालय
ने विनियमितीकरण व
वेतनमान के अनुसार
वेतन देने के
आदेश जारी किए।
फिलहाल शिक्षकों ने न्यायालय
के आदेश के
बावजूद विनियमितीकरण न करने
के खिलाफ उच्च
न्यायालय में अवमानना
वाद दाखिल किया
है जिस पर
मंगलवार को सुनवाई
है।
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खत्म न होने
वाला सफर
शिक्षकों की नियुक्तियां
हुईं: 1998
नियमितीकरण
अधिनियम बना : 2006
इस बीच याचिकाएं
हो गयीं : 179
संयुक्त सुनवाई हुई : 2009
कोर्ट का नियमितीकरण
आदेश : 2010
शीर्षकोर्ट
से विरोधी अपील
रद : 2013
2006 तक नियुक्त शिक्षक : 450
वर्तमान में मानदेय
शिक्षक : 1000
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लगता है कि
सरकार की पसंद
के शिक्षक सूची
में कम हैं
इसीलिए बार बार
वादा करने के
बावजूद शिक्षकों का आमेलन
नहीं कर रही
है। इस पर
मुख्यमंत्री से निर्णायक
बात की जाएगी।
- डॉ. विवेक द्विवेदी, पूर्व
महामंत्री कूटा।