Updated on: Thu, 19 Sep 2013 10:33 PM (IST)
बक्से में बंद
अभ्यर्थियों का साढ़े
सात करोड़
मोहम्मद इब्राहिम
ज्ञानपुर (भदोही) : राजीव, राकेश
व संगीता हो
या फिर सावित्री,
रागिनी व चंद्रेश।
बड़े अरमान संग
आवेदन किया था
कि चलो सफाईकर्मी
के रूप में
ही भाग्य खुल
जाय और सरकारी
नौकरी हाथ लगे।
वर्ष 2008 में शुरू
हुए सफाईकर्मी पद
की नियुक्ति प्रक्रिया
में ऐसी नजर
लगी कि नियुक्ति
आज तक नहीं
हो सकी। ऐसे
में डाक टिकट
के रूप में
अभ्यर्थियों का करीब
साढ़े सात करोड़
बक्से में कैद
होकर रह गया
है। यह इतर
है कि डाक
विभाग टिकट बिक्री
कर मुनाफा कमा
चुका है।
बसपा सरकार ने प्रदेश
के सभी जिलों
के प्रत्येक ग्राम
पंचायतों में सफाईकर्मी
का पद सृजित
कर नियुक्ति की
पहल शुरू की।
इसको लेकर पहली
बार मई 2008 में
करीब 56 सौ अभ्यर्थियों
ने आवेदन किया
था। प्रक्रिया शुरू
होते ही चयन
समिति में शामिल
अफसरों की धांधली
सामने आ गई।
लिहाजा नियुक्ति प्रक्रिया को
रद कर दिया
गया। दोबारा उसी
वर्ष दिसंबर में
मांगे गए आवेदन
में आवेदन पत्रों
की संख्या 80 हजार
पहुंच गई। इस
बार भी नियुक्ति
में अडंगा लगा
तो तीसरी बार
जुलाई 2010 में नियुक्ति
की प्रक्रिया शुरू
करते हुए आवेदन
पत्रों की मांग
कर ली गई।
इस बार करी
15 लाख लोगों ने आवेदन
कर दिया। लिहाजा
इसी दौरान पुराने
अभ्यर्थियों के बीच
ही प्रक्रिया संपन्न
कराने को लेकर
लड़ाई छिड़ गई।
इस बार ठप
पड़ी प्रक्रिया आज
तक नहीं शुरू
हो सकी, जबकि
धांधली में निलम्बित
हुए सभी अफसर
बहाल होकर कहीं
न कहीं तैनात
हो चुके हैं
तो अभ्यर्थी नियुक्ति
प्रक्रिया शुरू कराने
को लेकर सैकड़ों
बार धरना- प्रदर्शन
संग आमरण अनशन
तक कर चुके
हैं। हर बार
उन्हें सिर्फ आश्वासन की
घुंट्टी पिलाकर टाला जाता
रहा। बहरहाल यह
तो रही नियुक्ति
को लेकर चले
उठापटक की बात।
अब देखा जाय
तो जिला पंचायत
राज अधिकारी कार्यालय
में बक्सों में
बंद कर रखे
गए प्रत्येक आवेदन
पत्रों में रजिस्ट्री
डाक टिकट लगे
दो-दो लिफाफे
रखे गए हैं।
दोनों लिफाफों पर
यदि 50 रुपये का डाक
टिकट भी लगा
मान लिया जाय
तो 15 लाख आवेदन
पत्रों के साथ
साढे़ सात करोड़
रुपये का डाक
टिकट बक्सों में
बंद पड़ा हुआ
है जिसका कोई
लाभ अभ्यर्थियों को
नहीं मिल पाया।
हालांकि डाक विभाग
ने इन लिफाफों
की बिक्री कर
लाभ कमा चुका
है। विभागीय कर्मियों
की काना-फू
सी में नियुक्ति
को छिड़ने वाली
बहस में अकसर
यह चर्चा होती
रहती है कि
एक बक्से की
कीमत 40-50 लाख रुपये
से कम नहीं
होगी।
तो कौन बांधे
बिल्ली के गले..
-सफाईकर्मी
पद की अधर
में पड़ी नियुक्ति
प्रक्रिया को शुरू
कराना बिल्ली के
गले में घंटी
बांधने से कम
साबित नहीं होगा।
पूरे विकास भवन
में कुछ इसी
तरह की चर्चा
छाई रहती है
अभ्यर्थियों के होने
वाले प्रदर्शन व
अनशन के दौरान।
चर्चाओं पर गौर
किया जाय तो
नियुक्ति को लेकर
नए-पुराने अभ्यर्थियों
की लड़ाई संग
कई अन्य पेंचदगियों
को लेकर ही
कोई अफसर प्रक्रिया
को शुरू कराने
की हिम्मत नहीं
जुटा पा रहा
है। इसके साथ
ही कर्मचारियों का
टोटा भी राह
रोक रहा है।
कर्मचारियों का मानना
है कि यदि
दस कर्मचारियों को
नियमित मात्र 15 लाख आवेदन
पत्रों की छंटाई
में लगा दिया
जाय तो कम
से कम दो
वर्ष से अधिक
समय तो छंटाई
में ही लग
जाएगा। ऐसी स्थिति
में हर अफसर
शासन को पत्र
लिखने का आश्वासन
देकर मामले को
टालने के सिवाय
कुछ नहीं कर
रहे हैं।
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