सीधे नौकरी नहीं मिलने से पाठ्यक्रम से हुआ मोहभंग
शून्य अंक पर दाखिले का मौका, फिर भी सीटें खाली 1
वाराणसी
: एक दौर था, जब बीएड करने के बाद अभ्यर्थियों को मेरिट के आधार पर सीधे
विशिष्ट बीटीसी (बेसिक टीचिंग सर्टिफिकेट) में प्रवेश मिल जाता था।
तत्पश्चात, छह माह की ट्रेनिंग के बाद सीधे प्राथमिक स्कूलों में नौकरी
यानी तैनाती मिल जाती थी। अब इसका रास्ता बंद हो गया। 1 एनसीटीई (नेशनल
काउंसिल आफ टीचर एजुकेशन) ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि वर्ष 2014 से
प्राथमिक स्कूलों में शिक्षकों की सीट बीएडधारक से न नहीं बल्कि बीटीसी से
भरा जाए। दूसरी तरफ नियुक्ति के बाद टीईटी यानी शिक्षक पात्रता परीक्षा की
अनिवार्यता ने भी बीएड का क्रेज गिरा दिया है। छात्रों का कहना है कि बीएड
करने के बाद मेरिट के आधार पर पहले विशिष्ट बीटीसी के जरिए नौकरी मिल जाती
थी। अब बीटीसी अनिवार्य हो गया है तो क्यों बीएड किया जाय। बीएड के बाद दो
वर्ष जब बीटीसी करना होगा तो इससे अच्छा कि बीटीसी किया जाय। यही वजह है कि
शून्य अंक पर कालेज दाखिला लेने को तैयार है बावजूद प्रदेश के विभिन्न
कालेजों में 30 हजार सीटें खाली पड़ी है। हालांकि इन रिक्त सीटों को देखते
हुए आयोजक संस्था दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि अब चौथे चरण की
काउंसिलिंग कराने की तैयारी कर रहा है। 1महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के
शिक्षा शास्त्र के विभागाध्यक्ष प्रो. अरविंद कुमार पांडेय ने कहा कि बीएड
की सीटें रिक्त रहने के कई कारण है। उनमें सबसे प्रमुख कारण प्राथमिक
विद्यालयों में बीएड डिग्रीधारकों का चयन पर रोक लगा देना है। उन्होंने कहा
कि दूसरा कारण ज्यादातर सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कालेजों में रिक्त
हैं। छात्र पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कालेजों से बीएड नहीं करना चाहते
है।1संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग के अध्यक्ष
प्रो. प्रेमनारायण सिंह ने कहा कि जब से विशिष्ट बीटीसी में बीएड
डिग्रीधारकों का चयन रोक दिया गया है। साथ ही शिक्षक पात्रता परीक्षा
अनिवार्य कर दी गई। तब से बीएड का क्रेज गिर गया है। माध्यमिक स्कूलों में
शिक्षकों की भर्ती काफी लंबित है। ऐसे में बीएड करने से छात्र कतरा रहे
हैं।
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