अमेरिका की
फ्लोरिडा अंतरराष्ट्रीय यूनिवर्सिटी के डिर्पाटमेंट ऑफ बायोलॉजिकल साइंस
के डॉ. मारिया सी टेरेरोस, डेयान रोवाल्ड, रेने जे हेरेरा, स्पेन की
यूनिवर्सिटी डि विगो के डिपार्टमेंट ऑफ जेनटिक्स के डॉ.ज़ेवियर आर ल्यूस और
लखनऊ स्थित संजय गांधी पीजीआई के अनुवांशिकी रोग विभाग की प्रोफ़ेसर
सुरक्षा अग्रवाल और डॉ. फैज़ल खान ने शिया और सुन्नी मुसलमानों के जीन पर
लंबे शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है
कभी मंदिर कभी मस्जिद, कभी आरक्षण कभी शिक्षा, तो कभी सरकार की सहूलियतों के नाम पर राजनीतिक पार्टियां हिन्दू और मुसलमानों को अलग-अलग करने की कोशिश करती रहती हैं। लेकिन सच यह है कि हिन्दू और मुसलमान आपस में भाई-भाई ही हैं। उनके खून का रंग ही नहीं बल्कि उनके जीन्स भी एक जैसे हैं।
इसके बाद टीम ने सेलेक्ट किए गए लोगों से मुलाकात की। उनके साथ इंटरव्यू किया। साथ ही उन्हें इस रिसर्च के बारे में पूरी जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि इस रिसर्च से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन मेडिकल की दुनिया में आगे के रास्ते ज़रूर खुल सकते हैं। इसके बाद उनकी सहमति होने के बाद ब्लड सैंपल्स इकट्ठा किए और उनमें से डीएनए अलग किए गए।
रिसर्च में पता चला कि प्रदेश के शिया और सुन्नी मुसलमान और हिंदुओं के जीन में कोई अंतर नहीं है। इतना ही नहीं विज्ञानियों ने तुलनात्मक अध्ययन में भारतीय हिंदुओं, अरब देशों, सेंट्रल एशिया, नॉर्थ ईस्ट अफ्रीकी देशों के मुसलमानों के जीन के बीच भी किया तो पाया कि भारतीय मुसलमानों के जीन भारतीय हिंदुओं से पूरी तरह मेल खाते हैं। इनके जीन विदेशी मुसलमानों से मेल ही नहीं खाते
लखनऊ के एसजीपीजीआई के वैज्ञानिकों ने फ्लोरिडा और स्पेन के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किए गए अनुवांशिकी शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। शोध लखनऊ, रामपुर, बरेली और कानपुर जैसे शहरों के करीब 2400 मुसलमानों और हिंदुओं पर किया गया था। वैज्ञानिक इस शोध को चिकित्सा स्वास्थ्य की दिशा में बड़ी सफ़लता मान रहे हैं।
इस शोध के बाद चिकित्सा स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम बीमारियों के इलाज को लेकर रिसर्च शुरू हो गई है। वहीं सामाजिक तौर पर बात करें तो इस शोध का व्यापक असर लगातार सांप्रदायिक दंगों से जूझ रहे यूपी पर भी पड़ने की उम्मीद की जा रही है।
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कभी मंदिर कभी मस्जिद, कभी आरक्षण कभी शिक्षा, तो कभी सरकार की सहूलियतों के नाम पर राजनीतिक पार्टियां हिन्दू और मुसलमानों को अलग-अलग करने की कोशिश करती रहती हैं। लेकिन सच यह है कि हिन्दू और मुसलमान आपस में भाई-भाई ही हैं। उनके खून का रंग ही नहीं बल्कि उनके जीन्स भी एक जैसे हैं।
इसके बाद टीम ने सेलेक्ट किए गए लोगों से मुलाकात की। उनके साथ इंटरव्यू किया। साथ ही उन्हें इस रिसर्च के बारे में पूरी जानकारी दी गई। उन्हें बताया गया कि इस रिसर्च से उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। लेकिन मेडिकल की दुनिया में आगे के रास्ते ज़रूर खुल सकते हैं। इसके बाद उनकी सहमति होने के बाद ब्लड सैंपल्स इकट्ठा किए और उनमें से डीएनए अलग किए गए।
रिसर्च में पता चला कि प्रदेश के शिया और सुन्नी मुसलमान और हिंदुओं के जीन में कोई अंतर नहीं है। इतना ही नहीं विज्ञानियों ने तुलनात्मक अध्ययन में भारतीय हिंदुओं, अरब देशों, सेंट्रल एशिया, नॉर्थ ईस्ट अफ्रीकी देशों के मुसलमानों के जीन के बीच भी किया तो पाया कि भारतीय मुसलमानों के जीन भारतीय हिंदुओं से पूरी तरह मेल खाते हैं। इनके जीन विदेशी मुसलमानों से मेल ही नहीं खाते
लखनऊ के एसजीपीजीआई के वैज्ञानिकों ने फ्लोरिडा और स्पेन के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किए गए अनुवांशिकी शोध के बाद यह निष्कर्ष निकाला है। शोध लखनऊ, रामपुर, बरेली और कानपुर जैसे शहरों के करीब 2400 मुसलमानों और हिंदुओं पर किया गया था। वैज्ञानिक इस शोध को चिकित्सा स्वास्थ्य की दिशा में बड़ी सफ़लता मान रहे हैं।
इस शोध के बाद चिकित्सा स्वास्थ्य से जुड़ी तमाम बीमारियों के इलाज को लेकर रिसर्च शुरू हो गई है। वहीं सामाजिक तौर पर बात करें तो इस शोध का व्यापक असर लगातार सांप्रदायिक दंगों से जूझ रहे यूपी पर भी पड़ने की उम्मीद की जा रही है।
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