इलाहाबाद
(ब्यूरो)। उत्तर प्रदेश में लंबे समय से सरकारी नौकरियों में लागू आरक्षण
का कोई पैमाना तय न होने को लेकर प्रदेश सरकार घिर गई है। इलाहाबाद
हाईकोर्ट ने मामले में संज्ञान लेते हुए नौकरियों में आरक्षण जारी रखने पर
कई सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने सरकार से जानना चाहा है कि नौकरियों में किसी
जाति का ‘पर्याप्त प्रतिनिधित्व’ का वह क्या अर्थ लगाती है? नौकरियों में
आरक्षण के तहत विभिन्न जातियों एवं वर्र्गों के प्रतिनिधित्व के निर्धारण
का पैमाना क्या है?
पीसीएस जे प्रारंभिक
परीक्षा के अभ्यर्थी सुपर्ण समदरिया की याचिका पर सुनवाई कर रही खंडपीठ ने
सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है। याचिका में पीसीएस जे परीक्षा के
लिए जारी आरक्षण व्यवस्था को चुनौती दी गई है। याची के अधिवक्ता अनिल सिंह
बिसेन और अग्निहोत्रि कुमार त्रिपाठी की दलील थी कि पिछले कई दशकों से
प्रदेश में आरक्षण इस आधार पर जारी है कि जातियों/वर्गों का पर्याप्त
प्रतिनिधित्व सरकारी नौकरियों में नहीं है, लेकिन इस दौरान राज्य सरकार ने
यह जानने का कोई प्रयास नहीं किया कि किसी जाति या वर्ग का प्रतिनिधित्व
पर्याप्त संख्या में है या नहीं।
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