Thursday, December 18, 2014

बीटीसी अभ्यर्थियों का दर्द कल्याण का शासनकाल : नकल अध्यादेश के चलते काफी नीचे गिर गयी थी यूपी बोर्ड मेरिट

  • आशंका कि कहीं सहायक अध्यापकों की भर्ती में मेरिट से बाहर ना हो जाएं
इलाहाबाद : सहायक अध्यापक की पंद्रह हजार रिक्तियों के लिए संघर्ष कर रहे बीटीसी अभ्यर्थियों की चिंताएं अनायास नहीं हैं। उनकी परेशानी वर्तमान नहीं, बल्कि कल्याण शासनकाल का वह अतीत है जिसने यूपी बोर्ड की मेरिट को काफी पीछे धकेल दिया था। अभ्यर्थियों को यह आशंका सता रही है कि यदि 2012 के अभ्यर्थियों को भी इस भर्ती में शामिल कर लिया जाता है तो वह मेरिट में काफी नीचे पहुंच जाएंगे और उनके हाथ से अवसर निकल जाएगा। 

यह संयोग ही है कि बीटीसी 2011, विशिष्ट बीटीसी और उर्दू बीटीसी के अभ्यर्थियों की संख्या भी पंद्रह हजार के आसपास ही है। यदि पहले घोषित किए गए टाइमटेबिल के अनुसार काउंसिलिंग की जाती तो लगभग सभी की नियुक्ति के आसार नजर आ रहे थे, क्योंकि यह अभ्यर्थी शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करने के साथ ही अन्य अर्हताएं भी पूरी करते हैं। अभ्यर्थियों के अनुसार टाइमटेबिल में जो फेरबदल किया गया है, उसमें 2012 के बीटीसी अभ्यर्थियों को भी शामिल करने की संभावना बढ़ गई है। इससे पंद्रह हजार पदों के सापेक्ष उम्मीदवारों की संख्या तीन गुनी हो सकती है। बीटीसी-2011 संघर्ष मोर्चा के संयोजक योगेश पांडेय कहते हैं कि शासन को इस विसंगति से अवगत कराया जा चुका है लेकिन कोई संज्ञान नहीं ले रहा है। 2011 के अधिकांश अभ्यर्थी ऐसे हैं जिन्हें कल्याण सिंह के शासनकाल में जारी नकल अध्यादेश की वजह से बहुत कम अंक हासिल हुए हैं। उस साल हाईस्कूल और इंटर दोनों का ही उत्तीर्ण प्रतिशत काफी नीचे गया था। जबकि उसके बाद मुलायम सिंह के शासन में यूपी बोर्ड अंकों के मामले में उदार हुआ और आगे चलकर साल दर साल न सिर्फ प्रथम श्रेणी उत्तीर्ण छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है बल्कि 80 फीसद तक नंबर हासिल हुए।

ऐसे में पुराने अभ्यर्थियों के बाहर हो जाने का खतरा है। चूंकि उनकी उम्र अधिक है, इसलिए उनके सामने अन्य विकल्प भी नहीं हैं। यही वजह है कि बेसिक शिक्षा परिषद के सामने चल रहा अनिश्चितकालीन धरना समाप्त हो जाने के बाद भी प्रदेश के अन्य जनपदों के अभ्यर्थियों का आना जारी है। संघर्ष मोर्चा के पदाधिकारी उन्हें अब लखनऊ में जमावड़ा करने के लिए प्रेरित करने में जुटे हैं।

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