
यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने सुमित कुमार शुक्ला और अन्य की ओर से दाखिल याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। इससे पहले 9 सितंबर को कोर्ट ने सरकार से आरक्षण देने का क्राइटेरिया स्पष्ट करने तथा सेवाओं में विभिन्न वर्गो के प्रतिनिधित्व का आंकड़ा पेश करने का भी निर्देश दिया था। महाधिवक्ता एसपी गुप्ता ने याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाए और सरकार की ओर से और समय की मांग की लेकिन अदालत इससे संतुष्ट न हुई। याची के अधिवक्ता अनिल सिंह बिसेन और अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी ने कहा कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व की व्यवस्था का पता लगाए बिना ही सरकार आरक्षण जारी रखे है। कुछ जातियों का प्रतिनिधित्व कोटे से अधिक हो गया है जो कानून की मंशा के विपरीत है।
अदालत ने पूछे थे सवाल
-सरकार पर्याप्त प्रतिनिधित्व का क्या अर्थ लगाती है?
- क्या आरक्षित वर्ग की कुछ जातियों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिल चुका है?
-पिछले दस सालों में इस बाबत कोई जांच कमेटी या आयोग गठित हुआ ?
क्या है अनुच्छेद 16 [4] में
‘राज्य पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिसका
प्रतिनिधित्व राज्य की राय में अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है,
नियुक्तियों या पदों में आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।’
क्या है पर्याप्त प्रतिनिधित्व -
अदालत ने पर्याप्त प्रतिनिधित्व की विभाजन रेखा को स्पष्ट करते हुए कहा
है कि जिन जातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में नौकरियों में 50 फीसदी
आरक्षण का लाभ मिल गया है, उसे पर्याप्त प्रतिनिधित्व माना जाएगा। वर्तमान
आरक्षण नियमावली में 50 फीसदी के निर्धारित कोटे के अंतर्गत जातियों की
आबादी के हिसाब से उनका कोटा निर्धारित किया गया है।
इस आदेश का अर्थ-
इस आदेश का अर्थ-
-कई बड़ी जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हो जाएंगी।
- कई अन्य वंचित जातियों के लिए अवसर बढ़ेंगे।
- सामान्य वर्ग पर इस आदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
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