Friday, November 8, 2013

सभी शिक्षकों को समान वेतन संभव नहीं

  

विवेक वाष्ण्रेय/ एसएनबी नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समान कार्य-समान वेतन का सिद्धांत वहां लागू नहीं होता जहां नियुक्तियां वैधानिक नियमों के आधार पर नहीं हुई हों। निर्धारित चयन प्रक्रिया के बिना किसी स्कीम के तहत नियुक्त किए गए कर्मचारियों को उन लोगों के समान वेतन नहीं दिया जा सकता जिनकी नौकरी तयशुदा वैधानिक नियमावली के तहत हुई हो। जस्टिस केएस राधाकृष्णन और एके सीकरी की बेंच ने मध्य प्रदेश में शिक्षा गारंटी स्कीम के तहत भर्ती किए गए शिक्षाकर्मियों की याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही। बेंच ने राज्य सरकार से कहा कि छह से 14 साल के बीच की उम्र के बच्चों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के कार्यक्रम के तहत भर्ती शिक्षाकर्मियों को सिर्फ ढाई हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जा रहा है। यह राशि बहुत कम है। राज्य सरकार मानदेय बढ़ाने पर विचार कर सकती है। गौरतलब है कि प्राथमिक अध्यापकों के समान वेतन का विवाद राज्य सरकार के आदेश के कारण ही पैदा हुआ था। जनपद के मुख्य शिक्षा अधिकारी ने अध्यापक कैडर को प्रदत्त कुछ लाभ शिक्षाकर्मियों को प्रदान करने का आदेश पारित किया। यह आदेश 21 फरवरी, 2011 को आया, लेकिन छह माह बाद ही 12 अगस्त, 2011 को इस आदेश को वापस ले लिया गया। आदेश को वापस लेने का शिक्षाकर्मियों ने बड़ी तादाद में विरोध किया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में इस संबंध में कई याचिकाएं दायर की गई। हाई कोर्ट की एकल पीठ ने याचिकाएं खारिज कर दीं। हाई कोर्ट का मत था कि आदेश को वापस लेने में किसी तरह की खामी नहीं है। एकल पीठ ने यह जरूर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 23 तथा 43 के तहत याचियों का मानदेय बढ़ाया जा सकता है या नहीं, इस पर राज्य सरकार गंभीरता से विचार करे। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एकल पीठ के फैसले को सही ठहराया। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ गोपाल चावला तथा अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा गारंटी स्कीम पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम, 1993 के तहत शुरू की गई। इसी स्कीम के तहत शिक्षाकर्मी और संविादकर्मी नियुक्त किए गए। उन्हें गुरुजी भी कहा जाता है, लेकिन ये शिक्षाकर्मी या अध्यापक वैधानिक तरीके से सृजित किए गए पदों तथा निर्धारित चयन प्रक्रिया के तहत नियुक्त नहीं किए गए। इन शिक्षाकर्मियों की न्यूनतम योग्यता हायर सेकेंडरी है। उसके बाद इसे बढ़ाकर बीटीआई और डीईडी कर दिया गया। विभिन्न शिक्षा केन्द्रों पर नियुक्त शिक्षाकर्मियों को दो साल के प्रशिक्षण के बाद डिप्लोमा सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया। निर्धा रित चयन प्रक्रिया के बिना किसी स्कीम के तहत नियुक्त कर्म चारी इसके पात्र नहीं हो सकते शिक्षा गारंटी स्कीम के तहत नियुक्त अध्यापकों के मानदेय में बढ़ोतरी करे सरकार : सुप्रीम कोर्ट


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संस्था प्रमुखों के पदों को भरने का रास्ता साफ



इलाहाबाद (ब्यूरो) उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड की ठप पड़ी चयन प्रक्रिया शुरू होने का रास्ता साफ हो गया है। कोर्ट की ओर से प्रधानाचार्यों- संस्था प्रमुखों के पदों के लिए साक्षात्कार पर लगी रोक हटने के बाद चयन बोर्ड अब साक्षात्कार की तिथि घोषित करने की तैयारी में जुट गया है। पदों के सत्यापन सहित कई अन्य आपत्तियों को लेकर चयन बोर्ड ने संस्था प्रमुखों के साक्षात्कार पर रोक लगा दी थी।
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्ष प्रो. देवकी नंदन शर्मा ने बताया कि कोर्ट की रोक के कारण प्रधानाचार्य एवं प्रधानाध्यापकों के लगभग एक हजार पदों की चयन प्रक्रिया ठप पड़ी थी। उन्होंने बताया कि रोक हटने की जानकारी चयन बोर्ड की वेबसाइट पर डाल दी गई है। इसके बारे में प्रधानाचार्यों के पदों के लिए आवेदन करने वाले अभ्यर्थी अपनी आपत्ति दर्ज करवा सकते हैं। प्रधानाचार्यों के खाली पदों को भरने के साथ ही चयन बोर्ड शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को तेज करने में जुट जाएगा।
उन्होंने बताया कि 2011 की टीजीटी-पीजीटी परीक्षा पर लगी रोक के बारे में चयन बोर्ड ने कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर दिया है। इस मामले में भी कोर्ट की रोक हटते ही परीक्षा की तैयारी शुरू होगी। उन्होंने यह भी बताया कि पूर्व में चयनित शिक्षकों के समायोजन के बारे में भी कानूनी सलाह ली जा रही है। प्रो. शर्मा ने बताया कि साक्षात्कार की नई तिथि की घोषणा अगले सप्ताह कर दी जाएगी।
 


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याचियों की बहस पूरी, सरकार आज रखेगी अपना पक्ष





अमर उजाला ब्यूरो
इलाहाबाद। प्रदेश में 72825 सहायक अध्यापकों के चयन और नियुक्ति के मामले में दाखिल विशेष अपील पर बृहस्पतिवार को सुनवाई पूरी नहीं हो सकी है। शुक्रवार को भी इस पर बहस जारी रहेगी। याचिका पर पहले दिन याचीगणों की ओर से पक्ष रखा गया। उनकी दलील पूरी हो गई है। अभी प्रदेश सरकार का पक्ष सुना जाना बाकी है। कोर्ट ने एक अन्य पक्षकार कपिल देव यादव आदि को याचिका में शामिल होकर अपना पक्ष रखने की अनुमति प्रदान कर दी है। शुक्रवार को उनकी ओर से भी पक्ष रखा जाएगा। टीईटी उत्तीर्ण सैकड़ों अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति विपिन सिन्हा की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।
विशेष अपील पर पक्ष रखते हुए अधिवक्ता शैलेंद्र, नवीन कुमार शर्मा और अभिषेक आदि ने दलील दी कि सपा सरकार ने नवंबर 2011 के विज्ञापन को रद नहीं किया है। अगस्त 2012 में बेसिक शिक्षा सेवा नियमावली 1981 में किए गए संशोधन के कारण उसे निष्प्रभावी मान लिया गया है। जबकि संशोधन का प्रभाव भूतलक्षी नहीं हो सकता है। इसलिए 2011 को विज्ञापन अभी भी प्रभावी है और उसी के मुताबिक टीईटी प्राप्तांक को आधार मानते हुए चयन किया जाए। अधिवक्ताओें का यह भी कहना था कि नियमावली 1981 में प्रशिक्षु अध्यापकों का कोई कैडर नहीं है इसी आधार पर एकल पीठ ने 2011 के विज्ञापन को गलत माना था, जबकि विज्ञापन के मुताबिक छह माह का प्रशिक्षण देने के बाद नियुक्ति 1981 की नियमावली पर होगी। इसलिए चयन में नियमावली प्रभावी नहीं होगी।
प्रदेश सरकार का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता सीबी यादव का कहना था कि सरकार ने नियमावली में संशोधन कर दिया है इसलिए अब 2011 का विज्ञापन निष्प्रभावी हो गया है। चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक को कर दिया गया है। सीबी यादव शुक्रवार को भी अपना पक्ष रखेंगे।
सहायक अध्यापकों की भर्ती मामले पर सुनवाई जारी
शैक्षणिक गुणांक को मेरिट बनाने की मांग करने वाले भी बने पक्षकार
 


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अब वकीलों को भी देनी होगी परीक्षा




Updated on: Thu, 07 Nov 2013 11:09 PM (IST)

रामपुर। अब लॉ करने के बाद बार काउंसिल में पंजीकरण के बाद भी अधिवक्ता वकालत नहीं कर सकेंगे। उन्हें टीइटी की तर्ज पर आल इंडिया स्तर पर होने वाली परीक्षा पास करनी होगी। इस संबंध में बार काउंसिल के उपाध्यक्ष जगदीश सरन पांडेय की ओर से बार एसोसिएशन को सूचना भेजी गई है। परीक्षा में वर्ष 2010 से अब तक बार काउंसिल में पंजीकरण कराने वाले अधिवक्ता बैठेंगे।

  
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