Tuesday, August 6, 2013

खुशखबरी, डीए में हो सकती है 10 फीसदी की वृद्धि

केंद्र सरकार सितंबर में लाखों केंद्रीय कर्मचारियों को त्योहारी तोहफा दे सकती है। सरकार महंगाई भत्ते (डीए) में 10 फीसदी वृद्धि का ऐलान कर सकती है।
इस कदम से 50 लाख केंद्रीय कर्मियों और 30 लाख पेंशन धारकों को फायदा होगा। इस वृद्धि के बाद डीए 90 फीसदी हो जाएगा जोकि फिलहाल 80 फीसदी है।
moneyआधिकारिक सूत्रों के अनुसार, प्राथमिक आकलन से पता चलता है कि सितंबर में डीए में 10 से 11 फीसदी की वृद्धि की जाएगी जोकि इस साल 1 जुलाई से प्रभावी होगी।
उन्होंने कहा कि इसका सही आकलन 30 अगस्त को जून के औद्योगिक कामगारों के लिए अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई-आईडब्ल्यू) में संशोधन के जारी होने के बाद ही हो सकेगा।
  
30 जुलाई को सरकार द्वारा जारी जून के आंकड़ों के मुताबिक फैक्टरी कामगारों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति 11.06 फीसदी थी जो इस साल मई के 10.68 फीसदी आंकड़े से अधिक है।
आमतौर पर सरकार डीए में बढ़ोतरी के लिए पिछले 12 महीने के औद्योगिक कामगारों के लिए खुदरा मुद्रास्फीति का उपयोग करती है। इसलिए इस पर अंतिम निर्णय के लिए जुलाई 2012 से जून 2013 तक के खुदरा मुद्रास्फीति के आंकड़ों का उपयोग किया जाएगा।
केंद्रीय कर्मचारियों के परिसंघ के महासचिव केके एन कुट्टी ने कहा कि इस बार डीए में करीब 10 फीसदी की वृद्धि होगी और इसका ऐलान सितंबर में किया जाएगा।


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यूपी: बीटीसी की फीस के गोलमाल पर नकेल

 उत्तर प्रदेश के लखनऊ में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) अब बीटीसी फीस का गोलमाल नहीं कर सकेंगे। उन्हें पहले बीटीसी की फीस राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के खाते में देना होगा। इसके बाद उन्हें खर्च का पूरा प्रस्ताव बनाते हुए भेजना होगा, इसके बाद उन्हें एससीईआरटी से बजट आवंटित किया जाएगा।
teacherइसके अलावा उन्हें अन्य मदों में खर्च का हिसाब भी देना होगा। इस संबंध में प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा सुनील कुमार ने निर्देश भेज दिया है।
प्रदेश के जिलों में डायटों की स्थापना की गई है। इसका मुख्य काम शिक्षकों को प्रशिक्षण देना है। इसके लिए केंद्र से मिलने वाली मदद तो डायटों को दी ही जाती है, साथ में बीटीसी प्रशिक्षण का या अन्य मदों में पैसा उसे मिलता है।
  
पर स्थिति यह है कि डायट इसका हिसाब एससीआरटी को नहीं देते हैं। इस संबंध में शासन स्तर पर हुई बैठक में यह जानकारी आई कि डायट मिलने वाले पैसों के खर्च का हिसाब नहीं दे रहे हैं।
इसके आधार पर यह निर्णय किया गया है कि डायटों को अब खर्च का पूरा हिसाब देना होगा। डायटों को छात्रों से मिलने वाली फीस का पूरा पैसा पहले एससीईआरटी को देना होगा।
इसके बाद उन्हें मदवार खर्च का प्रस्ताव भेजना होगा। इसके आधार पर उनका पैसा उन्हें दिया जाएगा। उन्हें बताना होगा कि उन्हें कितना पैसा मिला, बीटीसी प्रवेश के एवज में कितनी फीस मिली, प्रशिक्षण कार्यक्रम या फिर अन्य मदों में कितना खर्च हुआ।
यह व्यवस्था इसलिए लागू की जा रही है, ताकि सरकारी पैसों का गोलमाल न हो सके।

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गुजरात मिड डे मील में केले की कैंडी!

MDM-MAYAWATI-ke-Daure-ka-JNकुपोषण की समस्या से निपटने के लिए गुजरात सरकार जल्द ही अपने स्कूली बच्चों के मिड डे मील में केले से बनी कैंडी को शामिल कर सकती है। नवसारी कृषि विश्वविद्यालय में तैयार की गई यह कैंडी विटामिन और आयरन से भरपूर है। राज्य सरकार बच्चों को दोपहर को पौष्टिक भोजन देने के तहत इस पर विचार कर रही है।
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक बीएल कोलंबे के मुताबिक, ‘केले के पौधे से बनी कैंडी की लागत एक रुपये से भी कम है। साथ ही यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। यह केले के पेड़ के तने से बनाई जाती है। फाइबर, आयरन और विटामिन बी से भरपूर यह कैंडी एनीमिया (रक्त में हीमोग्लोबीन की कमी) से पीड़ित बच्चों के लिए रामबाण है।’
कोलंबे ने दावा किया कि सेंट्रल फूड टेकभनोलाजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, मैसूर में कराए गए परीक्षण में कैंडी को बच्चों के लिए काफी फायदेमंद और सुरक्षित पाया गया। इसके फाइबर आसानी से पच जाते हैं।
  
कैंडी के बारे में गुजरात सरकार के प्रवक्ता सौरभ पटेल ने कहा कि कुपोषण से निपटने में यह काफी कारगर है। हम इस पर विचार कर रहे हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के मुताबिक राज्य में 49.2 फीसदी बच्चे कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं।
मिड डे मील के लिए नए दिशा निर्देश
मिड डे मील की गुणवत्ता और स्वच्छता के लिए केंद्र सरकार ने राज्यों को विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं।
मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री शशि थरूर ने राज्यसभा में लोजपा के रामविलास पासवान व अन्य सदस्यों के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि मिड डे मील में सुधार के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर जिम्मेदारियों के साथ प्रबंध ढांचे की स्थापना करना, भोजन को बच्चों को परोसने से पहले कम से कम एक टीचर द्वारा चखा जाना, स्कूलों को गुणवत्ता परक सामग्री की आपूर्ति और उनका सुरक्षित भंडारण शामिल है।
इसके अलावा व्यापिक आकस्मिक चिकित्सा योजना समेत कई दिशा निर्देश दिए गए हैं।

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Sunday, August 4, 2013

TET PAS ABHYARTHIYO NE SAUPA GYAPAN

साक्षरता मिशन में अब कक्षा 10 तक पढ़ाई

नई दिल्ली: साक्षरता मिशन अब केवल निरक्षरों को साक्षर बनाने का माध्यम भर नहीं रहेगा। अब इस योजना के माध्यम से साक्षर लोगों को 10वीं कक्षा के बराबर की शिक्षा प्रदान की जाएगी। इसके लिए साक्षरता मिशन के तहत पढ़ने वालों के लिए लेवल 5 तथा लेवल 10 की परीक्षा भी आयोजित होगी। मानव संसाधन मंत्रालय इसी साल से इस योजना को लागू करने जा रहा है।
देश में पढ़ाई लिखाई से वंचित रह जाने वाले लाखों लोगों को अक्षर ज्ञान कराने के मकसद से भारत सरकार सालों से साक्षरता मिशन अभियान चला रही है। पिछले तीन साल से इस मिशन के तहत शिक्षा पाने वाले लोगों की परीक्षा भी ली जाने लगी है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन अथॉरिटी नवसाक्षर लोगों की परीक्षा राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के माध्यम से साल में दो बार मार्च एवं अगस्त में आयोजित करता रहा है। यह परीक्षा लेवल वन कही जाती है। पहली लेवल की परीक्षा पास करने वाले व्यक्ति की पढ़ाई लिखाई का स्तर सामान्य स्कूलों में कक्षा तीन के छात्र के बराबर माना जाता है। मानव संसाधन मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब इस योजना के तहत पहली लेवल की परीक्षा पास करने वालों को लेवल पांच तथा लेवल दस की शिक्षा प्रदान करके एनआईओएस के माध्यम से उनकी परीक्षा का आयोजन किया जाएगा। लेवल पांच का स्तर आठवीं कक्षा के बराबर तथा लेवल दस की परीक्षा दसवीं कक्षा के समान होगी। इस तरह साक्षरता मिशन के तहत चलने वाले केंद्र अशिक्षित लोगों को साक्षर ही नहीं, बल्कि शिक्षित होने का भी अवसर प्रदान करेंगे।
• अभी सिर्फ पहली लेवल तक ही मिलती है शिक्षा
• केंद्र सरकार का फैसला इस साल से होगा लागू
वर्तमान समय में देश में कुल 272 जिलों में साक्षरता मिशन की योजना चलाई जा रही है। मार्च 2013 में हुई लेवल वन की परीक्षा में विभिन्न राज्यों से 53.62 लाख लोग शामिल हुए थे। इनमें से 73.49 प्रतिशत परीक्षा पास करने में सफल रहे। उत्तर प्रदेश में सफलता का प्रतिशत 83 फीसदी से भी ज्यादा रहा, जबकि उत्तराखंड में 68.9 फीसदी लोग ही इस परीक्षा में सफल हो सके। वहीं, हिमाचल प्रदेश में इस मिशन के तहत सिर्फ 51 फीसदी लोग ही सफलता हासिल कर पाए हैं।


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बच्चो को मुफ्त कान्वेंट में पढ़ाए, फार्म डाउनलोड करें

RTE: एक लाख तक की आय प्रमाण पत्र बनबाये, बच्चो को मुफ्त कान्वेंट में पढ़ाए, फार्म डाउनलोड करें

RTEफर्रुखाबाद: केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गए शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के अनुसार गरीब और कमजोर वर्ग के बच्चो को स्कूल संचालको को कुल सीट में 25% प्रवेश देना अनिवार्य है| ये नियम सीबीएसई बोर्ड, आईसीएसई और स्टेट बोर्ड सभी प्रकार के स्कूलों में लागू है| गरीब से तात्पर्य जिनकी आय 35000 का इससे कम रुपये सालाना है| और कमजोर वर्ग में एक लाख की वार्षिक आय सीमा के लोग आते है| एक बार प्रवेश करा पाए तो कक्षा 8 तक खर्च होने वाला लाखो रुपये का खर्च सरकार करेगी और आपकी जेब में बचत ही बचत| इस स्कीम में मुफ्त शिक्षा, मुज्फ्त किताबे, मुफ्त ड्रेस सब आता है| स्कूल वाला किसी प्रकार के शुल्क की मांग नहीं कर सकता|
इस अधिनियम के तहत बच्चे के निवास के एक किलोमीटर के दायरे में यदि कोई सरकारी स्कूल नहीं है तो वो अपने प्रवेश के लिए प्राइवेट स्कूल का नाम दे सकता है| जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की जिम्मेदारी है कि उस बच्चे का प्रवेश कराये| इसी के साथ प्री प्राइमरी यानि कि यदि आप अपने बच्चे का प्रवेश प्ले ग्रुप, नर्सरी, या के जी में करना चाहते है तो अपने पास पड़ोस या किसी भी मनचाहे कान्वेंट में करा सकते है, इसके लिए 1 किलोमीटर के दायरे में सरकारी स्कूल की बाध्यता आड़े नहीं आएगी| क्योंकि उत्तर प्रदेश में परिषदीय स्कूलों में अभी प्री प्राइमरी कक्षाएं संचालित नहीं होती है| और ये अधिनियम प्री प्राइमरी पर भी लागू होता है| लिहाजा बेहतर यही है कि यदि इस योजना का लाभ लेना है तो बच्चे को शुरू से ही कान्वेंट में प्रवेश करा दिया जाए|
इस योजना में प्रवेश के लिए बच्चे की कम से कम उम्र तीन साल होना आवश्यक है| और अभिवावक या माता/पिता की अधिकतम आय एक लाख रुपये| अधिनियम के मुताबिक प्रवेश प्रक्रिया सत्र शुरू होने से ६ माह तक चलेगी| कोई भी स्कूल प्रवेश देने से मना करता है तो उसकी मान्यता रद्द की जा सकती है| और यदि बिना मान्यता के चल रहा है तो स्कूल पर ताला पड़ सकता है|
प्रवेश के लिए आवेदन बेसिक शिक्षा परिषद् विभाग के खंड शिक्षा अधिकारी को दिया जायेगा तो आवेदन को बेसिक शिक्षा अधिकारी के लिए अपनी रिपोर्ट के साथ अग्रसारित करेगा| इसके बाद की जिम्मेदारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की है| जिला शिक्षा समिति का सचिव जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी होता है और अध्यक्ष जिला अधिकारी| तो प्रवेश की किसी भी समस्या के लिए जिलाधिकारी से भी मिला जा सकता है| स्कूलों पर उनका सीधा नियंत्रण होता है| इसके लिए कोई यह कहकर नहीं बच सकता कि सीबीएससी या आईसीएससी के स्कूल उनके कण्ट्रोल से बाहर है| क्योंकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम में जिला शिक्षा अधिकारी शब्द का इस्तेमाल किया गया है| उत्तर प्रदेश में जिला शिक्षा अधिकारी का कार्य जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (कक्षा 1 से 8) और जिला विद्यालय निरीक्षक (6 से 12) के पास होता है| अगर इन दोनों में से कोई अधिकारी बच्चे को कान्वेंट स्कूल में प्रवेश दिलाने में आनाकानी करता है तो जाहिर है कि वो अपने दायित्वों से भाग रहा है|
शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत प्रवेश फॉर्म यहाँ से मुफ्त डाउनलोड कर सकते है|
RIGHT TO EDUCATION ADMISSION FORMright to education admission form


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UPTET : संघर्ष के लिए लामबंद हों प्रशिक्षु शिक्षक



बिल्थरारोड (बलिया) : अपने हक के लिए हमें एकजुटता के साथ संघर्ष करना होगा। न्यायालय का बहाना बनाकर यूपी सरकार ने किसी तरह का सहयोग न करने की अपनी मंशा अब साफ कर दी है। ऐसे में इंसाफ संघर्ष से ही लिया जा सकता है। उक्त बातें टीईटी उत्तीर्ण प्रशिक्षु शिक्षकों ने गुरुवार की देर शाम हनुमानगढ़ी मंदिर के समीप संघर्ष समिति की बैठक में कहीं। बैठक में 4 अगस्त को प्रस्तावित लखनऊ विधानसभा के समक्ष विशाल धरना एवं प्रदर्शन को सफल बनाने पर भी चर्चा की गई। बैठक में राजेश जायसवाल, कमलेश, संजय गुप्ता, मनोज वर्मा, शिव बचन राम, अरविंद यादव, अशोक राम, सत्य प्रकाश सिंह, सत्येंद्र विश्वकर्मा व मनीष बरनवाल आदि उपस्थित थे


News Sabhaar : http://www.jagran.com/uttar-pradesh/ballia-10616124.html (2.8.13)


मेरे सभी मित्रों -- तमाम निराशाओं के बीच एक बहुत ही बढ़िया खबर टी0वी0 पर फ्लेश हो रही है ,,,,,,आपको याद होगा कि 3 - 4 दिन पहले संजय मोहन की पत्नी ने 65 - 70 पन्नों का प्रार्थना पत्र मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को सौंपा था जिसमें उन्होने उनको टेट की परीक्षा शुचितापूर्ण होने तथा अपने पति संजय मोहन को साजिशन फसाने का आरोप लगाया था । अखिलेश सरकार ने उनकी पत्नी की सारी दलीलों को मानते हुये संजय मोहन को आज समाजवादी पार्टी में शामिल कर लिया गया है जिसका साफ और सीधा अर्थ निकलता है कि जो अखिलेश सरकार ने आज तक टेट में धाँधली की आड़ में अपना घिनौना खेल खेला था ,,,,आज स्वयं उसपर सहमति दे दी है कि टेट परीक्षा में धाँधली नहीं हुयी थी । कोर्ट में भी इनकी सारी प्रतिक्रियाएँ केवल टेट में धाँधली तक ही सीमित हैं । अब यह कोर्ट में कहेंगे क्या ??????????संजय मोहन को समाजवादी पार्टी में लेने का तात्पर्य है कि उनपर सारे आरोप निराधार हैं और अगर उनपर सारे आरोप निराधार है तो अब कोई कारण नहीं बनता कि टेट से नियुक्ति न हो । आशा करता हूँ कि बहुत जल्द ही हमको कुछ अच्छा सुनने में आने वाला है । हो सकता है कोर्ट के कुछ कहने से पहले ही सरकार इस मुद्दे पर फैसला ले ले ,,,,अगर नहीं भी लेती है तो कोर्ट का आदेश आने बाद इनके पास उसके पालन के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं है । दोनों की परिस्थितियों में विजय हमारी ही होनी है ।


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UP Police Recruitment : पुलिस भर्ती बोर्ड नहीं बदल सकता नियम

दरोगा भर्ती परीक्षा के मामले में हाईकोर्ट का निर्णय


इलाहाबाद। खेल के नियम बीच में नहीं बदले जा सकते हैं। इस नैसर्गिक सिद्धांत पर हाईकोर्ट ने पुलिस भर्ती बोर्ड द्वारा दरोगा भर्ती परीक्षा में चयन के नियमों के लिए किए गए बदलाव को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने यह साफ किया है कि एक बार चयन प्रक्रिया प्रारंभ हो गई तो उसके बाद नियमों में बदलाव का अधिकार चयनकर्ताओं को नहीं रहता है। ऐसे में पुलिस भर्ती बोर्ड द्वारा नियम बदलना असंवैधानिक है। कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि जो अभ्यर्थी चयनित हो चुके हैं वह इस आदेश से प्रभावित नहीं होंगे


दरोगा भर्ती के दर्जनों अभ्यर्थियों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने कहा कि जिन अभ्यर्थियों ने औसत पचास प्रतिशत या उससे अधिक अंक प्राप्त किए हैं उन सभी को सफल मानते हुए मुख्य परीक्षा में शामिल किया जाए।

कोर्ट ने पुलिस विभाग को निर्देश दिया है कि वह सभी याचियों को एक-एक हजार रुपये हर्जाने के तौर पर अदा करे। याचियों की ओर से अधिवक्ता विजय गौतम ने पक्ष रखा। नागरिक पुलिस और प्लाटून कमांडेंट पीएसी में उपनिरीक्षक की भर्ती के लिए वर्ष 2011 में विज्ञापन जारी किया गया। 

शारीरिक परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को प्रारंभिक लिखित परीक्षा पास करनी थी। जिसमें दो सौ अंक के तीन प्रश्नपत्र निर्धारित थे। लिखित परीक्षा में अभ्यर्थियों के लिए तीनों प्रश्नपत्रों में औसत पचास प्रतिशत अंक पाना अनिवार्य था। बाद में भर्ती बोर्ड ने नियमों में बदलाव करते हुए प्रत्येक प्रश्नपत्र में न्यूनतम 40 प्रतिशत अंक और कुल योग का 50 प्रतिशत अंक पाना अनिवार्य कर दिया।

नियम परिवर्तन के परिणाम स्वरूप ऐसे तमाम अभ्यर्थी प्रारंभिक परीक्षा में असफल हो गए जिन्होंने औसत तो पचास प्रतिशत प्राप्त किया था मगर किसी प्रश्नपत्र में 40 प्रतिशत से कम अंक प्राप्त हुए। निर्णय को हाईकोर्ट में यह कहते हुए चुनौती दी गई परीक्षा की प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीच में नहीं बदला जा सकता है




News Sabhaar : Amar Ujala (4.8.13)

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